पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/६५

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बिरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। ताकीकान तजिउठि दौरती सबवाम ॥ हमतौ न जानें है सही जादूकछू वहपास । तनछांहसी डोले त्रियानहिं डरहिं प्रीति प्र- कास ॥ हम रहैं नाहीं नगर में अबबृद्ध बालकजान । कहिकोसके विनकाज को निशिढेसकी कलिकान॥ दृगदेखबीको कहेनहिं सुनी काननबात । है कियो जैसोमाधवाइहि नगर में उतपात।। नित विप्रवीण बजावही नितबिकल होतीवाल । भयलाज पुत्र भरतार तजिगृह काज फिरहिं बिहाल ॥ बिटिया बहू बनिता वि. मोहीं छोड़के सबत्रास ।धों प्रेतलागो माधवा छुटिचेत गवो अनयास ॥ आड़ी रहेनहिं गेहमें छांडीसुलाज बनाय । गदींसो विप्रसनेहसे उठिदौरती अकुलाय ॥दै दै कपाटन बेड़ियेकैकैसो यतन अनेक । मुखमारिगारि उचारिकै करजोरि जाहिं सटेक ॥ तरुणी सबैमदमत्त सों मदिरा पियेंद्विजगान । गिनती है नाहिं महावते नहिं अंकुशै कुलकान ॥ वेरीनराखे लाज की उठिबन्द ने सुखसाज । कुलको कि लावो तोड़के भजिजाय योंकरकाज।। सो. सुनसाहिब यहपरि बलीराम बानिक कही। धरेवनत नहिंधीर बनतहमें त्यागे शहर ।। सुनि बानकन के बैन महाराज उत्तर दियो । कहयो छानकर लैन हैं जु बुलावत विप्रको॥ कळू असहसा काज करैफेरि पछिताय सो। ज्यों नृपहनिकर बाज पछितानो उरशूलधर ॥ नकुल हन्यो दिजएक वनिकन दे दिजनन्दन । स्वामित करत अनेक श्वान सिपाहीने हन्यो। सिंह पिंगलक साहि संजीवक वृषभैहन्यो। भयो दरदपुन ताहि सोसुनहित उपदेश में ॥ चौ० द्विजको बोलिभूप पठवायो। माधोराज सभामें आयो। सोहै पाग जरकसी तुर्रा । जुल्फवावरिन कोलखिजुरी ॥ केशरखौर भाल में दीन्हें । पगनपांवड़ी लकुटीलीन्हें ॥ जलजकंटुका मुक्ताकानन । शरदचन्द्र समसोहत अानन ॥