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पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/६७

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदला चरित्रभाषा। ३९ माधोवचन। मेरोचित नरािनकी चाहन एको अंग। दियै दोषको देतहै उड़ि २ परत पतंग। अपनेदिलकी खुशीको होंगावतले वीण। शिला गिरैजो सरगते तोकाकरै प्रवीन । प्रजाबचन। धूर्तनरनकी रीतियहबहुत बजावत गाल। बिनजादू कबहूं नहीं होवे ऐसोहाल । माधवबचन। किहिकारण येरागको उठि दौर अतुराय । राखौकैद नारीनको भयदिखाय समुझाय ॥ मोकों तुमसाँचो कर पिछले को परमान। धोबिनसों जीतनहीं मलत खरी केकान । पाटी निरवकसारकी कहत गढ़ी किहिहेत । बालकसों फोरवायकै दोषबढ़इयै देत ॥ मोहको आवतहँसी सुनि २ इनकेन । जैहैवस्तु बजारमें कहतबाणिकसोलैन । बलिये जिनके भिया जिन के गुपये आँय। कामकरावें हारमें विषवनियाँ परखाँय ॥ राजोवाच। माधोनल करिकासकतजोनहिं आवै बाम । परखडयाको खोरका घरको खोटोदाम ।। प्रजाबचन। महाराज नीकीकहीयह बिवेककी बात । दिजकोगांव बसाइये हम सब निकरेजात ॥ बनिता सब खोटीकरी दिजको करो अदोष । कहा चलतहै प्रजाको महाराज पररोष ॥ जादूबश केहरकरी बाँधै आवत ब्याल ।