पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/७१

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। एकराखि सबहींतजिदीजै। कैसे यहप्रमाण हमकीजै॥ दो० गुसाजान महराज के मनमें माधव विप्र । माल कौवस्तिक गायके ताहि रिझायो क्षिप्र॥ चौ. तबपुनिसाहिबयहीविचारी । किहिअवगुणमाधवैनिकारी। एकविप्र गुणमयपुनिसोई । याके गये अयशजगहोई ॥ प्रजा गये उजरत रजधानी । दुवो भांति यह बात नशानी॥ सुनियों हाल माधवा बोल्यो। दरद आपने दिलको खोल्यो। (माधवबचन) दो कहासिंह गजराजकी बलि न देवता लेत । पै अतिदुर्बल देखिकै अजया सुतको देत॥ अरुपुनि सबजग कहतहैं कोमरदे मजबूत । हट पटाय के लगत हैं ओछे पिंडै भूत ॥ तीनजने इकसूत हो बुकरै लाये माख । सोसुन हित उपदेशमें मुलतानी कीसाख ।। नारी आननहीं लखी करनारीतज यार। मोहिको नाहक धरतहैं भागे पीठपहार ॥ (राजबचन) दो • प्रजात्याग कीक्या चलीसुतदारा तजिदेहुं । हाँका गुनी निकार के अयशदुनी में लेहुं । (विरही बचन) दो० सुनसुभान नरकरत हैं यदपि दूर अपराध । तदपि प्रकट दुखदेत विधि छिमत नहींपलआध ॥ कन्हेि सबकी देहमें विधि दोनों दृगदूत । येप्रत्यक्ष लक्षित करत नेह नशा को सूत ॥ दंडक । कीजे इकंतहा तंतमतो मद प्रेमछिपाइवेको सबनेत हैं।भांखी में रदोंउरअंतर वै तऊना बचचलिकै सुधिलेत हैं। बोधा विरंचि विचारिरहे सबके जियकी येनरजीकी सचेत हैं। देहमें नेह नशानकरै हगदूत दशा सबसों कहदेतहैं ।