पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/७२

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४४ विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । दो गुप्तपाप जग में प्रगट या सुभाय होजाय । जैसे नशा शरीरको नैनन मल के प्राय ।। इतिश्रीमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषाबिरहीसुभानसम्बादे बालखंडेअष्टमस्तरंगः ॥८॥ इश्क सारखी नाम ॥ अथ पारन्य खण्ड । नवमस्तरंग प्रारम्भः॥ छंदसुमुखी। लीलावतिने यह सुधिपाई । माधवकोनिकरावत राई । जगमय छोड़के कुलकान । नृपपै चली अतिहिरिसान। करगहि माधवाको लीन्ह । इहि विधि शोर तिहि ठों कीन्ह ।। को समरत्थ लखि इहि बार । देहै माधवाहि निकार ॥ छंदनाराच । गहै सुबाह विपकी सकोपवालयोंकहै । बतावमी- तमोहिं तोहि कादि देन कोकहै । शापदेउँ तासुको सुना सो हालही करौं । उतार शीश देहते हजर राइ के धरौं ।। सो० अद्भुत लाख महराज मौन गहे भौने गयो। सचिव सबै शिरताज तिन दिज कोदीन्ही विदा ॥ चौ• राजाज्याव कळूनहिं दीन्हों। तयसवमंत्रिनयों मतकीन्हों। पाती नृपके नाव बनाई। सो माधव को दै पठवाई ॥ बीरा तीन पान के कीन्हें । सो लैदूत माधवै दीन्हें । चिट्ठी माधवा बाँची जवहीं । ऊभीश्वासलई दिज तबहीं। दो. आनराय गोबिन्दकी सुनी माधवा विप्र । देश हमारो छोड़ि के जातरहौ तुम क्षिप्र ॥ छप्पय । वनिताको वशकहा पुरुषअपलोकलगावै। सेवकका बशकहा गुसासाहिब फुरमावै ॥ बालकको बशकहा जननिजो विषदै मारै । दये को दान न देय भिखूकोयतन विचारै॥ प्रजा निकारै राइ तो कोसहाय ताकी करै। यहजान माधवा धीर धरि का चिन्ता चित करि मरै।। स. पक्षिनको विरछाघने औ घनेविस्थानको पक्षी हैं चाहक । ।