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पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/८

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दि कभी राजा सुनेगा कि माधवा नल कामकंदलाके भवन में है तो निस्सदंह मुझे मरवाडालेगा ऐसा विचारकर मनमें धीर- जधर सोते समय कामकंदला के हाथ में राजा केभयके कारण अपने निर्वाह न होने का वृत्तांत सब लिखकर उसको वैसेही अ- वस्थामें छोड़ वहां से बिदाली और चलते चलते राजाके नगर से तीन कोसनदीकिनारे जा विश्राम किया तदनन्तर सुआ से बोला हे मित्र अब कहां चलूं और किससे अपनी बिरह पीर का वृत्तांत सुनाऊं कि जो मेरे इस अपार दुःखको दूर करेगा इतना सुन शुक बोला कि हे द्विजोत्तम अब आप उज्जैन नग री को चलिये वहांका राजा बीर विक्रमादित्यअति धर्मज्ञपरोप कारी और सत्यव्रतीहै वही राजा आपकी पीर को हरेगा शुक की ऐसीवाणी सुनकर माधवानलने उज्जैन नगरी की राहली और वहां पहुंच श्रीकालेश्वरके मंदिर में डेरा किया और दोघड़ी विश्रामकरने के पश्चात् माधवानल ने सुश्रा से अपनी प्राण- प्यारी कंदला का वृत्तांत वर्णन करनेलगा कि हे प्रवीनमें कंदला को सोती हुई अवस्थामें छोड़ चलाआयाहूं कहीं ऐसा न हो कि वह जागने परमुझे न पाय प्राण त्यागदे तब शुक बोला कि- यदिशाज्ञा हो तो मैं जाऊं और कामकंदला की कुशल क्षेमका संदेशा लेऔरउसे संतोष दे लौट आऊंगा यह सुनि विप्र ने एक- पत्र लिखि सुआके गले में बांध दिया सुआ वहां से उड़ाऔर चार दिवस मार्ग में व्यतीतकर पांचवें दिवस कामकंदला केवा- ग में एक वृक्ष पर जा बैठा और कामकंदला बाग में अपनी स- हेलियों के साथ माधवानल के बिरह की बातें कर रही थी कि इतने में सुआ वृक्षसे नीचे उतर धीरे धीरे उसी स्थान पर जाप- हुंचा कंदला ने उसशुक के गले में पत्रबँधा देख उसे पकड़ अ. पनी गोदमें बड़ी प्रीति से बैठा लिया और गले से पत्र छोरके- प्रीति पूर्वक पढ़ने लगी और सहेलीको प्राज्ञा दी कि शुक के लिये थोड़ा भोजन लावो वह तुरन्त उठ भोजन लाई जिसकोसु.