अाने हर्षपूर्वक गृहण किया पश्चात् शुक माधवानल के उज्जै न नगरी पहुंचने तथा बिरह अवस्थामें व्याकुल रहने का संदे- शा सम्पूर्ण वर्णन किया और उसे सब प्रकार से संतोषदे बिदा मांगी तदनन्तर कंदलाने भी पत्र का पलटा लिख उसी प्रकार सुधाके गले में बाँध उसे विदादी और सुआ उज्जैन नगरीकी राहली और चार दिवसमार्गमें व्यतीतकर पांचवें दिवसमाधवा को आय प्रणाम किया माधवाने पत्र पाय शुक को आशीर्वा- द दिया और कंदला के क्षेम कुशल का वृत्तांत पूंछकहनेलगा कि हे मित्र अब कैसा यत्न कियाजावे कि जिसमें वह प्राण प्यारी प्राप्तहो तदपश्चात् सुआ बोला कि हे दिजदेव इस नगरी का राजा बीर विक्रमादित्य नित्य प्रातःकाल अस्नानकर इस मंदि- रमें महादेवजी की पूजाकरने को प्राताहै यदि तुम राजासे में- ट करोगे तो तुम्हारा काम निस्संदेह सिद्ध होगा इसप्रकार शुक की वाणी सुन माधवानल महादेवजी के मंदिर में गया और बहुप्रकार से अस्तुति कर बोला हे नाथ अब आप के सिवाय इस संसार में मेरा दुःख हरनेवाला कोई नहीं है इससे मेरी सहाय कीजिये मैं आपकी शरणागतहूं इसप्रकार प्रार्थना कर बाहर आया और खरीमट्टी ले मठ में यह दोहा लिखा ॥ दो० धनगुण विद्यारूप के हेती लोग अनेक । जो गरीव पर हित करै तेनहि लहियतु एक ॥ इसप्रकार दोहालिखअपने डेरेमें आयादूसरेदिन राजाप्रातःका- लअस्नानकरि महादेवजी के मंदिर में पाया और मंदिरके द्वा. रपर लिखाहुादोहा पढ़ चिन्ता करने लगा कि इसदोहेकेलिख ने वाले का कुछ हेतु है ऐसा विचारकर दोहाका पलटा लिखा। दो० दोहाको पलटो लिखों दर्द भरे नईश। देत एकविक्रमसुन्यो काज पराये शीश ॥ ऐसा दोहाका पलटा लिख तथा महादेव का दर्शन ले राजा अपने घर आया और यहांमाधवा नल अन्य दिवस महादेवजी
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