५६ विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । नाम आपनेप्रिय को लेहीं । यों पुनि ताहि उरहनो देहीं। हो हिरणाक्षी प्रियाहमारी । शशिवत बदन तज्यो सुकुमारी॥ मृग शावकलो तुबयेलोचन । कहां रही दुरि हे दुख मोचन ॥ स। बल्लभा बाल प्रिया बनिता मन भावदीवाम हितगज गौनी । चंद्रमुखी रखनी है नितंबिनी पीन कुचा सुजनी पिक नी॥बोधाव खानत माधया यों तरुनी घरनी गवड़ी सुखदैनी । कामिनी कामदाप्यारी तियाश्रयेलीलावती है कि तू मृगनैनी।। सो० मोहीदेइ निसार तोहिं न वझी भावदी। कै चुक्यो करतार मोहिं तोहिं अंतर कियो । यह चरित्र लखि बाल चकित भई तरुणी निकट ! है का इसको हाल कोऊ बूझो पथिकसों। करमें लीन्हें बीण योगी भोगी भूपसुत । तबइकप्रौढप्रवीण दीन्ह ज्वावसबहीनकहँ ॥ दंडक । झुकत सो झांकत सौझुकत झहराय ऐसो देहदु बराइबो न दोषतें डगतु है। भारीभोनैन रतनारे तारेअनिमिषनदी ह उरस्वास लै लैपगन खनतहै।बोधा कवि माध्या को देखिके विचारै बाल चित्तसो चरित सौ तजान पै ठगतु है। कामसोलस तुनिजबाम बिछुरीहै याते योगी हैनभोगीनबियोगीसोंलसतुहै।। सो० अल्प बुद्धि सुरभंग यदि विदिक चटपटी उर। येविरहित के अंग दृग न चलत विभ्रमवचन ।। ताको परचो लैन अापसमें बनितन कह्यो । कहे विप्रसनबैन कितजातकोही कहौ। उर उपजी कछुवाय किधौं भंग रंगपियत । लागी किधों बलाय वृथा बादसोकाकरत॥ (माधो बचन) रखता। नशाक धीनखाते हैं। अये हम इश्क मदमातेहैं।गये थे बागके ताई । उतैवेछोकरी आईं। उन्हींजा दुकछुकीन्हा।हमा रादिलकैद करलीन्हा॥अचानकभयाभटभेरा।उन्होंने चश्मटुक
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