५७ विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। फेरा ॥ कलेजा छेदकरज्यादा।भयामन मारुमें मादा।इश्कदिल दारसों लागा । हमने दिलदर्द अनुरागा ॥ खड़ी फुलवारिया खेले । जम्हीरी हाथसों झेलै॥ मजा बागिचाका देखे । कसम बल्लीनकीलखे ॥ कली चुनगूंथती चोटी। नबोढ़ानायकाछोटी । कधीफल नॉरगीतोरे। फुहारेसैकरों खोले ॥कधी खबेलसोलपटै। कधी गलबांह यों भटकै ॥ कधी गावै हँसै बोले । कधी तुतरा- यके बोले ॥ झरोखा ओर को चलदी। पवन के दोषदै दुलदी।। कधीअलसाय तनतोरे । अँगूठी हाथ की फोरै ॥ कधी बँदचो- लिया कसदी। कधी दिलखोल के हँसदी ॥कधीनीवी कसैखो. ले । कधीझक झूमती डोलै । मुनैया तूतिया बरही । मगनक- लकेल को करही ॥ विहंगम लाल सुकसारो । करेंचंडूल झन- कारो॥ तिन्हों के गहने को धावे । परदे गहे क्यों पावै ॥ कुरूं कहि उनहींको टेरै । न पाये गुसाहोहे रे। सखीसे कहो गहि- ल्यावो । जिसी अवकूवसों पावो ॥ कावखानराझलै । तिन्हीं को देखभ्रभभूलै ॥ हिंडोरापास चलजाती। खड़ी झूलै न डर- खाती॥ नरमकटिदूनहोजावै । हमाराजान दुख पावै ॥ बतानेसे फूलसे झरते । कुलाहल मधुपगन करते ॥ कहीं लख चौपराह- रखें । कहीं सुजनीनको परखे ॥ हमारे निकट चलआई। हमने इक अमृत धुनिगाई ॥दिवाने ओ दिवानी । सखिनके बीचमुस क्यानी॥कह्योनितपाइयो सांई।इसी मकान ताई । तिहारादीह हमपावें॥दिलंदरदर्द विसरावें । उन्होंका रूपनीमाना ॥ भयो दिलदेखदीवाना । कळूनाचाहनायेती ॥ हमारी चाहउनसे ती। कहूंरहीदादिलंदरमें । दो० रचना युतद्विजके बैन सुने इश्ककीसैन । रही ऐननैनी सबै जड़ताधरिभरनैन । सबोधा किसूमो कहा कहिये जो विथा सुन फेररहै पर गाइकै । याते भलो मुख मौन धरो के करौ उपचार हिये थिरधा- इकै ॥ ऐसो न कोऊ मिल्यो कबहूं जो कहै हित रंच दया उरला
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