तब तक कर लें; नौकरी न लगी तो घर का रास्ता नापेंगे।
बिल्लेसुर को जवाब देते देर हुई। सत्तीदीन की स्त्री ने कनपटी घुमाई कि बिल्लेसुर बोले––'कौन बड़ा काम है? काम के लिए ही तो आया हूँ सात सौ कोस––देस सात सौ कोस तो होगा?'
बिल्लेसुर के निश्चय पर जमकर सत्तीदीन की स्त्री ने कहा, 'ज़्यादा होगा'। कानपुर की बर्दवान की दूरी। सोचकर बोली, 'जमादार आयेंगे तो पूछूँगी, उनकी किताब में सब लिखा है।'
बिल्लेसुर ख़ामोश रहे। मन में क़िस्मत को भला बुरा कहते रहे।
शाम को जमादार आये। भोजन तैयार था। स्त्री ने पैर धुला दिये। जमादार पाटे पर बैठे। स्त्री दिन को मक्खियाँ उड़ाती हैं, रात को सामने बैठी रहती है। जमादार भोजन करने लगे। स्त्री ने कहा 'जमादार, बिल्लेसुर कहते हैं, अपना देस यहाँ से सात सौ कोस है, मैं कहती हूँ, और होगा। तुम्हारी किताब में तो सब कुछ लिखा है?'
सत्तीदीन को एक डाइरी मिली थी। डाइरी भी वही बाबू लिखता था। लिखने के विषय के अलावा और क्या क्या उसमें लिखा है, सत्तीदीन उस बाबू से कभी कभी पढ़ाकर समझते थे। सत्तीदीन ने सोचा, महाराज ने ऊँचा पद तो दिया ही है, संसार को भी उनकी मुट्ठी में बेर की तरह डाल दिया है। कई रोज़ वह किताब घर ले आये थे, और वहाँ जो कुछ सुना था, जितना याद था, ज़बानी स्त्री को सुनाया था।
बायें हाथ से मूछों पर ताव देते हुए, मुँह का नेवाला निगलकर