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पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/१४०

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बिहारी-रत्नाकर

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१९ बिहारी-रत्नाकर कौड़ा ( कपर्द )= बड़ी बड़ी कौड़ियाँ ॥ कसि= जकड़ कर । निर्मंद= मुद्रित, बंद । इसका अर्थ अन्य टीकाकारों ने विना मुँदे हुए, अर्थात् खुले हुए, किया है । यद्यपि यह अर्थ भी यहाँ हो सकता है, क्यॉक कोई कोई मलंग मौन धारण न कर के हक़ हक़' की रट लगाए रहते हैं, जिससे उनके मुँह खुले रहते हैं, पर हमारी समझ में इस दोहे में निर्मूद' का अर्थ बंद ही करना समीचीन है, क्योंकि ‘बरुनी' के विषय में जो ‘कसि' शब्द का प्रयोग कवि ने किया है, उससे आँखों का बंद कहना ही उसका इष्टार्थ प्रतीत होता है । मलिंग–एक संप्रदाय के मुसलमान फ़क़ीर मलिंग अथवा मलंग कहलाते हैं। ये हिंदुओं के औघड़ तथा अलखियों की भाँत कौ की लड़ों तथा लोहे की साँकड़ों से अपने शरीर कसे रहते हैं, और किसी एकांत स्थल में मौनावलंबन किए, ईश्वर के ध्यान में निमग्न, पड़े रहते हैं। | ( अवतरण )-पूर्वानुरागिनी नायिका आँख बंद किए हुए नायक के ध्यान में निमग्न है, और उसकी आँख की कोर में आँसू भरे हुए हैं। सखी नायक से उसकी यह दशा कह कर और उसकी आँखों को मलंग ठहरा कर व्यंग्य से उससे दर्शन-भिक्षा देने की प्रार्थनः करती है | ( अर्थ )[ उसके ] इग-रूपी मलिंग, अश्रुविंदु-रूपी कौड़ों [ तथा ] सजल बरुनीरुप साँकड़ों को [ अपने शरीर पर ] कस कर, मुंह बंद किए, [ अपने के ] डाले रहते हैं ( पड़ा रखते हैं ) ॥ । दोहा उयौ सरद-का-ससी, करति क्यों न चित चेतु। मनौ मदन छितिपाल को छाँहगीरु छबि देतु ॥ २३१ ॥ उयौ= उदय हुआ ।। राका= पूर्णिमा ॥ चतु= ज्ञान, विचार, स्मृति ॥ छितिपाल ( क्षितिपाल ) = राजा ॥ छाँहगीरु-फारसी में साथःगीर उस छोटे चॅदवे को कहते हैं, जो राज की गद्दी पर लगाया जाता है । सायः शब्द का हिंदी-भाषांतर छाँह कर के छाँहगीर शब्द बना लिया गया है । यहाँ इसका अर्थ छत्र है ॥ ( अवतरण )-मानिनी नायिका का मान छुड़ाने के लिये सखी उससे कहती है ( अर्थ )-[ वह देख, ] शरद-पूर्णिमा का चंमा उग आया। [ इस पर भी तु] चित्त में विचार क्यों नहीं करती। [ यह ] मानो मदन महाराज का छत्र छवि दे रहा है [अतः तुझे विचारना चाहिए कि उक्त महाराज के दरबार की जब तैयारी हो रही है, और वे शीघ्र ही चित्त-मंडल पर अपना अधिकार किया चाहते हैं, तो फिर मानिनियों की क्या दशा होगी ] ॥ ढरे ढार, तेहीं ढरत; दू ढार ढरौं न । क्य आनन अनि स नैना लागत नै न ।। २३२ ॥ ढरे= झुके, ढलके, रोझे ।। दार = ढुलकाव, ढुलकने की दिशा ॥ नै= झुक कर ।। ( अवतरण )-नायक किसी नायिका पर रीझा हुअा है। उसके अंतरंग सखा उसे समझाते हैं कि उसका प्राप्त होना बड़ा कठिन है, अतः तू किसी अन्य और चित्त लगा । नायक उनको उत्तर देता है १. करत ( ४, ५ )।