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बिहारी-रत्नाकर

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बिहारी-रत्नाकर १२५ प्रानप्रिया हिय मैं बसै, नखरेखा-ससि भाल । भलौ दिखायौ आइ यह हरि-हर-रूप, रसाल ॥ २९७ ॥ भलौ-इस शब्द का अर्थ लक्षणा से यहाँ भयानक तथा दुःखद होता है ॥ ( अवतरण )-खंडिता नायिका की उझि नायक स ( अर्थ ) -[आपके हृदय में [तो] प्राणप्रिया ( जो स्त्री आपको प्राण के समान प्यारी है, वह ) बसी है, [ जिस प्रकार विष्णु भगवान् के हृदय में लक्ष्मीजी वसती हैं, और ] नखरेखा-रूपी शशि [ अापके ] भाल में [ बसा है, जैसे शिवजी के मस्तक पर चंद्रमा रहता है ]। हे रसाल, [आपने आज ] आ कर यह हरि [ और ] हर का रूप [ एक साथ] बड़ा उत्तम दिखलाया ।। तिय निय हिय जु लगी चलत पिय-नग्व-रेख-खौं । सूखेन देति न सरसई खॉटि खटि खत-खौं ॥ २९८ ॥ निय = निज ॥ खरौं = वह घाव, जो शरीर में नख, काँटे इत्यादि से खुरच जाने पर पड़ जाता है । यह शब्द खरोट, खरीट तथा खट, तीनों रूपों में प्रचलित है ।। ( अवतरण )-प्रोषितपतिका नायिका प्रियतम के नख के खट को, उनका प्रसाद समझ कर, सूखने नहीं देती । सखी-वचन सखी से-- | ( अर्थ )-प्रियतम की नख-रेखा की जो खरौंट [ उनके परदेश ] चलते समय निज हृदय पर लगी है, [ उसकी ] सरसई ( गीलापन ) को [वह ] स्त्री [ यह समझ कर कि यह खर्राट प्रियतम के चलते समय का चिह्न है ] घाव के खुरंड को खट खट (नोच नोच) कर सुखने नहीं देती ॥ सघन कुंज, घन घन-तिमिरु, अधिक अँधेरी राति । तऊ न दुरिहै, स्याम, वह दीपसिखा सी जाति ॥ २९९ ॥ ( अवतरण )-नायक तूती अथवा सखा से प्रार्थना करता है कि आज अच्छा अवसर है, त नायिका को अभिसार करा कर अमुक कुंज मैं ले चल । सखी नायक की रुचि बढ़ाने के निमित्त, नायिका के रूप की प्रशंसा करती हुई, उसकी बात का खंडन करती है। अभिप्राय यह है कि नायक और अधिक लालायित हो कर प्रार्थना करे, तब ले जाऊँ | ( अर्थ )-[ यद्यपि ] कुंज सघन हैं, घन-तिमिर ( बादलों को अंधकार )[ भी ] घना है, [ तथा ] रात्रि [ भी अँधेरी है, एवं बादलों के कारण ] अधिक अँधेरी है; तथापि, हे श्याम, वह दीपशिखा सी [ नायिका ] जाती हुई ( अभिसार करती हुई ) छिपेगी नहीं [ कारण, अँधेरे में दिया नहीं छिपता ] ॥ | - - -

  • १. खरोट (४, ५) । २. सूकन (२, ३, ५)। ३. खोट (४, ५ ) । ४. यह ( ३, ४, ५)।