पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/१९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१४९
बिहारी-रत्नाकर

________________

बिहारी-रत्नाकर १४१ जम्हाई आने में बहुधा आँसू निकल आते हैं। अतः नायिका वृथा ही जम्हाई, जिसमें सखियाँ उसके आँसुओं को जुभाश्रु समझें, और विदेशगमन-प्रस्तुत नायक से उसका प्रेम लक्षित न कर सकें। कंचनतन-धन-चरन कर रह्यौ रंगे मिलि रंग। जानी जाति सुबाँस हाँ केसरि लोई अंग ॥ ३५९ ॥ कंचनता= कंचन से तन वाली ॥ धन = स्त्री, नायिका ॥ सुबास ( स्ववास ) = अपनी सुगंध ।। | ( अवतरण )-सखी अथवा दूती नायक मे नायिका के शरीर की सुनहली गुराई तथा रुचिर सुगंध की प्रशंसा कर के उसके हृदय में रुचि उपजाती है ( अर्थ )-[ उस ] कंदन से तन वाली धन (नायिका) के श्रेष्ठ वर्ण में केसर का] रंग [ तो ] रंग में मिल रहा (मिल कर अलक्षित हो गया) है, [अतः उसके अंग में लगाई गई कसर [उसकी] अपनी सुगंध ही जानी जाती है [ क्योंकि उसके शरीर की सुगंध कुछ केसर से न्यून मोददायिनी तथा प्रह्लादकारिणी नहीं है। सखी के कहने का तात्पर्य यह है कि उसका शरीर ऐसा सुनहला तथा सुगंधित है कि उसमें लगाई गई केसर न तो रंग से लक्षित होती है, और न गंध से ] ॥ । खरै अदय, इठलाहटी, उर उपजावति त्रासु । दुसह संक विर्स को करे जैसै साँठि-मिठासु ॥ ३६० ॥ अदब = किसी की मानमर्यादा का सम्यक संरक्षण ॥ इठलाहटी = बनावटी गर्व के साथ चेष्टा को अथवा वचन के विकृत व्यवहार को इठलाना कहते हैं। ‘इठलाहटी' का अर्थ इठलाने वाली, अर्थात् गर्वन्चेष्टा से बर्ताव करने वाली, होता है । स ठि-मिठासु--सोंठ के खेतों में कुछ गांठे विषैली हो जाती हैं। देखने में तो वे सोंठे ही के ग्राकार की होती हैं, परंतु उनमें सोंठे की सी चरपराहट नहीं होती, प्रत्युत एक प्रकार की मिठास होती है, जिससे लोग उनको विष समझ लेते हैं । ( अवतरण )-नाशिको स्वभाव ही से इठलाहटी, अर्थात् इठलाहट से व्यवहार करने वाली प्रकृति की, है। पर आज वह, नायक को सापराध जान कर भी, उसका बड़ा सन्मान करती है । मायक उसका मान लक्षित कर के कहता है ( अर्थ )-है इठलाहट्टी (गर्व-युत व्यवहार करने की प्रकृति वाली), [आज तु अपने] खरे अदब ( बड़े आदर के बर्ताव ) से | मेरे ] उर में त्रास ( मान का डर ) उपजाती है। जैसे [ स्वभाव-सिद्ध कई ] सोंठ को मिठास विष की दुःसह ( अति कठिन ) शंका [उत्पन्न ] करती है ।। १. घन ( ४ ) । २. राग ( ४ ) । ३. सुभाव (२) । ४. हैं ( ३, ४, ५)। ५. लागी ( २ ), लाये (४) । ६. विष ( २ ) ।