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१६१ बिहारी-रत्नाकर इक भी, चहौं हैं, बूड़, बैहैं हजार । किते न औगुन जग करै बैनै चढ़ती बार ॥ ४६१ ॥ बै= वयक्रम ॥ नै=नदी ।। ( अवतरण )-कवि की प्रास्ताविक उक्ति है कि नदी की भाँति वय भी चढ़ते समय अनेक अनर्थ करती है, अतः मनुष्य को चढ़ती जवानी से सचेत रहना उचित है (अर्थ)-वय-रूपी नदी चढ़ते समय जगत् में कितने अवगुण नहीं करती । एक ( कोई )[ तो इस अवस्था के प्रभाव से ] भीग जाते हैं ( विषय-रस में मिल जाते हैं ), [ कोई ] कीचड़ में फँस जाते हैं (विषय-सुखों में ऐसे फैंस आते हैं कि दूसरी ओर जा ही नहीं सकते ), हज़ारों डूब जाते हैं ( सिर से पाँव तक विषय-भोग में मिमग्न हो जाते हैं ), [ और ] हज़ारों बह जाते हैं ( लोक, परलोक सबसे दूर हो जाते हैं ) ॥ गाढ़ें ठहैं कुचनु ठिलि पिय-हिर्य को ठहराइ । उकैसैं हैं हीं त” हियँ देई सबै उकसाइ ॥ ४६२ ।। गर्दै = सघन, कठोर तथा पीन । ठाढ़े = उन्नत, ऊँचे । ठिलि =ढकेली जा कर ॥ उकसह = उकास अर्थात् उभार पर आए हुए ॥ उकसाइ = उभार, उखाड़ ॥ ( अवतरण )-अंकुरितयौवना नायिका से सखी परिहास-पूर्वक उसके यौवनागमन तथा सौंदर्य की प्रशंसा करती हुई कहती है | ( अर्थ )- तेरे ] गाढ़े [ तथा ] ठाढ़े कुचों से ठिल कर (अर्थात् जव तेरे उरोज भाढे ठाढ़े हो कर प्रियतम के हृदय में धक्का लगाएँगे, तो उनसे केली जा कर ) [ तेरी ] कौन [ सौत ] प्रियतम के हृदय में ठहरेगी ( अर्थात् कोई न ठहर सकेगी ) । [ तेरे कुचों ने तो ] तेरे [ ही ] हृदय पर ( अर्थात् प्रियतम के हृदय पर विना लगे ही ) 'उकसाई' ही (उठते हुए से ही, अर्थात् विना उठे, केवल उठान पर आए हुए ही) [ हो कर ] सभाँ ( सब सौतों) को [ प्रियतम के हृदय में ] उकास दिया ( उभार दिया, हलचल में कर दिया ) है [ भावार्थ यह कि प्रियतम के हृदय में तेरी जो सौतें जमी हुई , उनमें हलचल तो तेरे उभार पर आए हुए ही कुचों ने, तेरे ही हृदय पर से, कर रखी है। अतः अब उनमें प्रियतम के हृदय से ढकेले जाने पर वहाँ थमे रहने का सामर्थ्य नहीं है। बस फिर जब तेरे उरोज पीन तथा उन्नत हो कर प्रियतम के हृदय में धकियापेंगे, तो वहाँ कौन ठहर सकेगी, अर्थात् अभी से तेरी सौतों की ओर से प्रियतम को वित्त कुछ फिर सा गया है, फिर जब तेरी पूर्ण यौवनावस्था आवेग, तब तो वह किसी को स्मरण भी न करेगा ] ॥ १. भीजे (२, ४, ५) । २. परे ( २, ४, ५ )। ३. बुड़े ( २, ४, ५) । ४. बहे ( २, ४, ५)। ५. करे ( ४, ५) । ६. नै ( २ ), नई ( ३, ५) । ७. बै ( ३, ४, ५) । ८. बाढे ( २ ), गादे ( ४ )। १. ही ( १ ) । १०. उकसाएँ” ( १ ) । ११. १ (१) । १२. सबै दई ( ३, ५ ), सब दीनी (४) ।