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पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/२४५

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बिहारी-रत्नाकर


०२ बिहारी-रक्षाकर ( अबतरण )-प्रोषितपतिका नायिका प्रीष्म की लुओं के विषय में सखिर्यों से कहती है कि ये लुएँ नहीं हैं, प्रत्युत तुम इनको ऋतुराज के विरह से संतस्हृदया ग्रष्म ऋतु की उसासँ समझो ; फिर भला मैं अपने पति के विरह से संतप्त हो कर जो उष्ण उच्छ्रास लेती हूँ, तो अाश्चर्य क्या है ! देखो, ऋतु भी अपने पति के वियोग मैं ऐसा ही करती है । ( अर्थ )-[ह सखियो, ] चारों ओर ये पाचक सी प्रबल लुएँ नहीं चल रही हैं। [ इनको तो तुम ] वसंत ( ऋतुराज ) के विरह में ग्रीष्म-द्वारा ली जाती हुई उसासें समझो ॥ 'ग्राम' शब्द को लोग पुग्नंग तथा स्त्रीलिंग, दोन ही प्रकार प्रयुक्र करते हैं। इस दोहे में इसको स्त्रीलिंग ही मानना संगत है । सतया मैं केवल दो और दोहाँ मैं ग्रीष्म शब्द अाया है। पर उनमें उसका प्रयोग ऐसा है कि यह पता नहीं चलता कि बिहारी उसका कौन लिंग मानते थे । 'उसास' शब्द का प्रयोग बिहारी ने दोन लिंग में किया है । इस विषय में २६२-संख्यक दोहे की टीका द्रष्टव्य है ॥ कहलाने एकत बसंत अहि मयूर, मृग बाघ । जगतु तपोवन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ ।। ४८8 ।। तपोवन = तपस्वियों का वन । तपोवन में तपस्विया के प्रभाव से जीव जंतु परस्पर का वैर छाड़ कर बसते हैं । दीरघदाघ= दीर्घ अर्थात् प्रचंड ताप वाली ।। निदाघ = ग्रीष्म ऋतु ।। | ( अवतरण )-वन के जीवाँ को, ग्रीष्म के प्रचंड प्रभाव से कातर हो कर, परस्पर का वैर-भाय भून कर, एकत्र रहना कवि वर्णित करता है ( अर्थ )-अहि ( सर्प ) [ तथा] मयूर [एवं ] मृग [ तथा बाघ [ मारे गरमी के] कहलाने' ( कातर हुए, व्याकुल हुए ) एकत्र [ ही ] चलते हैं । प्रचंड ताप वाली ग्रीष्म ऋतु न [ अपने प्रभाव से ] जगत् के तपोवन सा कर दिया है ( बना रक्खा है ) ॥ उधर मयूर तथा बाघ को मारे गरमी के इस बात का ध्यान ही नहीं है कि सर्प तथा मृग हमारे अहार हैं, और न उनको उन पर झपटने की शक्ति ही है। इधर सर्प तथा मृग को भी इस बात की सुधि नहीं है कि हम मयूर तथा बाघ के अहार हैं, और न उनको भागने की शक्ति ही है। ग्रीष्म की प्रचंडता ऐसी व्याप्त हो रही है । पग पग मेग अगमन परत चरन-अरुनदुति झूलि । ठौर ठौर लखियत उठे दुपहरिया से फूलि ॥ ४९० ॥ अगमन= श्रागे । दुपहरिया= एक प्रकार का अरुण पुष्प, जो वर्षा ऋतु में मध्याह में फूलता है । संस्कृत में इसको बंधुजीव कहते हैं । ( अवतरण )-सखी नायिका के पाँव की सखाई की प्रशंसा नायक से कर के उसके हृदय में उसके देखने की उत्सुकता उत्पन्न करना चाहती है १. रहत ( २ )। ३. मैं ( १) । ३. रहें ( २ )।