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बिहारी-रत्नाकर

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१० विहारी-रखकर बिहँस = विशेष रूप से हँसाँ, अर्थात् इस रीति से हँसौं कि जैसे कोई कुछ छिपी हुई बात को समझ कर हँसता है । हँस =प्रसन्नता-पूर्वक हँस ॥ (अबतरण ):-दो परकीया नायिकाएँ एक ही नायक से अनुरक हैं, और दोन मैं मैत्री भी है। पर दोनों को एक दूसरे के अनुराग का वृत्तांत निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है । नायक विदेश गया हुआ था, जिससे दोन दुखी रहती थीं, अतः दोन को एक दूसरे पर उसी के विरह मैं दुःखित होने का संदेह था । एक दिन दोन साथ ही बैठी हुर था कि इतने में किसी ने उनके मित्र का नाम ले कर किसी से पुकार कर कहा कि अमुक व्यक्ति अ गए । यह सुन कर दोनों हुजस उई, जिससे वे, एक दुसरे का प्रेम लक्षित कर के, अपना लक्षित कर लेना ग्यंजित करती हुई, मुसकराईं, और फिर आपस मैं समझ बूझ कर प्रसन्नता से हँसी । यही वृत्तांत कोई सखी किस अन्य सखी से कहती है| ( अर्थ )-किसी ने [ किसी अन्य से ] पुकार कर [ इनके ] मित्र को विदेश से आया हुआ कहा ( इनके मित्र का नाम ले कर कहा कि अमुक व्यक्ति विदेश से आ गया )। [ यह ] सुन कर [दोनों ] हुलसी (उल्लासित हुई ), [ जिससे दोनों ने एक दूसरे को अनुराग लक्षित कर लिया, और ] विहस ( अपना लक्षित कर लेना व्यंजित करती हुई हँसी ), [ और फिर ] दोनों दोनों को देख कर ( दोनों दोनों की चेष्टा से आपस में समझ बूझ कर ) [ प्रसन्नतापूर्वक ] हँस दीं ॥ जद्यपि सुंदर, सुघर, पुनि सगुन दीपक-देह ।। तऊ प्रकासु करै तित, भरियै जितें सनेह ॥ ३५८ ।। ( अवतरण )-मानिनी नायिका को सखी समझाती है कि नायक से स्नेह करने ही मैं तेरी शोभा है ( अर्थ )-दीपक-रूपी देह यद्यपि सुंदर, सुघड़ ( अच्छी गढ़ने वाली )[ और ] फिर 'सगुन' (१. बस-सहित । २. शुभगुण-संपन्न ) भी हो, तथापि [उसमें इन सब बातों से प्रकाश नहीं हो सकता, वह ] प्रकाश उतना ही करती है ( १. उतना ही उजाला उसमें होता है । २. उतनी ही शोभा उसमें होती है ), जितने स्नेह ( १. तेल । २. प्रेम ) से [ उसको ] भरा जाता है । पलनु प्रगटि, बरुनानु बढ़ि, नहिँ कपोल ठहरात । अँसुवा परि छतिया, छिनकु छनछनाइ, छिपि जात ।। ६५९ ।। ( अवतरण )-सखी अथवा दूती नायक से नायिका का विरह निवेदन करती है ( अर्थ )-[ उस नायिका के हृदय में विरह-ताप ऐसा बढ़ा हुआ है कि उसके ] आँसू [ उयल कर] पलकों में प्रकट हो, बरुनियों से बढ़ कर [ अधिकता के कारण ] कपोल पर नहीं ठहरते, [ और ] छत पर पड़ कर, क्षण मात्र छनछना कर ( छन छन शब्द, अर्थात् ऐसा शव जैसा तप्त तवे पर पानी की बूंदों के पड़ने से होता है, कर के ) छिप जाते हैं (अलक्ष हो जाते हैं )॥