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बिहारी-रत्नाकर

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बिहारी-रत्नाकर २७) में न्यूनपद दूषण नहीं कहा जा सकता, क्यॉक लक्षणा शक्ति से यह एक जड़ाऊ कर्ण-भूषण विशेष का नाम पड़ गया है। उन्होंने यह भी लिखा है कि यह दोहा बिहारी का नहीं है, पर इस कथन का कोई प्रमाण नहीं बतलाया है । यह दोहा हमारी चार प्राचीन पुस्तक में वि यमान है, जिनमें एक सन् १७७२ की लिखी हुई है, अतः हमारी समझ में यह दोहा मिलाया हुआ नहीं प्रतीत होता । अनवरचंद्रिका में मुरासा' के स्थान पर पाठ ही पुरस्पा' पाया जाता है, और प्रभुदयालु पाँडेजी ने भी 'मुरासा' का अर्थ 'मुरम् ॥' ही माना है ।। ( अवतरण )-सखी नायक से मुरासे की शोभा का वर्णन कर के नायिका के कपोल का सौंदर्य तथा सुख-स्पर्श व्यंजित करती है| ( अर्थ )-[ उस ] स्त्री के कान में मुरासा ( जड़ाऊ कर्ण-भूषण विशेष ) मोतियाँ से शुति ( झलक, चमक) पा कर यें (इस प्रकार ) लता ( खुशभित होता ) है, मानो [ सुंदर तथा सुख-स्पर्श ] कपल के स्पर्श से [ उन पर, सात्विक होने के कारण, ] स्वेदकरा ( बिंदु ) छा रहे हैं ( आच्छादित हो रहे हैं ) ॥ मिलि परछाहीं जोन्ह स रहे दुहुनु के गात । हरि राध इक संग हीं चले गली मह जात ॥ ६७४ ॥ ( अवतरण )-गजिये मैं कहाँ परछाह होती है, और कहाँ चाँदनी । सखी सखी से श्री कृष्णचंद्र तथा श्रीराधिकरजी के शरीर की श्यामतः तथा गौरता की प्रशंसा करती हुई कहती है कि हर तथा राधा गली में एक साथ ही चले जा रहे हैं, पर किसी को यह लक्षित नहीं होता कि दोनों साथ हैं, क्याँ जहाँ परछा होती है, वहाँ श्रीकृष्ण चंद्र का शरीर उसमें मिल जाता है, अतः जो वहाँ उन को देखता है, वह केवल राधिकाजी ही को देख पता है, और जहाँ चाँदनी होती है, वहाँ श्री राधिकाजी का शरीर उसमें मिल जाता है, अतः जो उनको वहाँ देखता है, वह केवल श्रीकृणचंद्र ही को देख पाता है ( अर्थ )-[ हे सखी, यह बड़ी विलक्षण बात है कि ] हरि [ तथा] राधा एक साथ ही गली में चले जा रहे हैं, [ पर देखने वालों के एक है। एक दिखाई देते हैं, क्योंकि 1 दोनों के गोत्र ( शरीर ) परछाईं। [ श्रीर] च दन से ( में ) मिल रहे ह”( मिलते जाते हैं)॥


--- बिधि, विधि कौनै करै'; टरै नर्ह परै हूँ पार्नु ।

चितै, किते हैं लै धरय इतै इनँ तनै मानें ॥ ६७५ ।। ( अवतरण )-सखी का वचन मानिनी नायिका से - १. मैं ( २ ) । २. मैं ( २ ) । ३. कौनि ( २, ४ ) । ४. करे टरे (४, ५ ) । ५. परे ( ३, ४, ५ ) । ६. पन ( २, ३, ५) । ७ चि कि ( ३ ) , चित केले ते ( ५ )। ८. ४ ( ३ ) , इते ( ४, ५ ) । . इते (२, ४, ५)। १०. तनु ( ३, ५)। ११. मान ( २, ३, ५ ) ।