पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/३२१

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२७८
बिहारी-रत्नाकर

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'२७८ बिहारी-रत्नाकर ( अर्थ )-[ तेरा मान ऐसा गुरु है कि नायक के ] पाँव पड़ने से भी नहीं टलता । हे देव ! [ अय कोई ] कौन विधि (रीति, यत्न, उपाय ) करे । [नैंक तू इधर तो ] देख, तृने इतना ( अधिक अथवी बड़ा ) मान इतने [ छोटे ] तन में कितै' ( कहाँ ) ले धरा है। ( समा लिया है ) ।। 'चित' शब्द से सखी नायिका को अपनी ओर दिखला कर हाथ से मान के प्रमाण का आधिक्य तथा उसके तन की सूक्ष्मता बताती है ॥ इस दोहे के अर्थ में प्रायः सभी टीकाकारों ने बड़ी गड़बड़ की है ॥ मोरचंद्रिका, स्याम-सिर चढ़ि कत कति गुमानु । लखवी पाइनु पर लुठति, सुनियतु राधा-मानु ।। ६७६ ॥ चंद्रिका-इस शब्द के विषय में ४१६:संख्यक दाहे की टका द्रष्टव्य हो । ( अवतरण )-सखा श्रीकृष्णचंद्र को स्वच्छं। वन-विहार में निरत देख कर मेरचंद्रिका से यह दोहा कहनी हुई श्रीराधिकाजी के मान की धमकी दे कर उनको उनके पास ले जाना चाहती है। 'सुनियतु' शब्द से व्यंजित होता है कि उसका यह धमकी देना उसकी बनावट मात्र है। उसने अपने झूठे ठहरने के बचाव के निमित्त पहले ही से कह दिया है कि २धि काजी का मान सुना जाता है, जिसमें नायक वहाँ जाने पर उनको मान मैं न देख कर उसको झूठी न ठहरा स है:| ( अर्थ )-हे मोरचंद्रिका, [ तू ] श्याम के सिर चढ़ कर ( १. सिर पर स्थापित हो कर । २. श्रीकृष्णचंद्र-द्वारा सन्मानित हो कर ) क्यों गुमानु' (अभिमान, घमंड ) करती है। [तृ शीघ्र ही ] पाँवों पर लुटकती देखी जायगी, [ क्योंकि ] राधिकाजी का मान सुना जाता है । | यह दोहा मोरचंद्रिका पर अन्योक्रि भी हो सकता है । जहाँ कोई किती राजा के सन्मान पर गर्व करे, वह इस अभिप्राय से यह कहा जा सकता है कि तु इस राजा के सन्मन पर क्या गर्व करता है, इस राज से भी बड़े बड़े राजे संसार में हैं, जिन्हें प्रसन्न करने के निमित्त यई राजा स्वयं उनके पाँव पड़ता है। चिरजीवी जोरी, जुरै क्यूँ न सनेह गैंभीर ।। की घटि; ए बृषभानुजा, वे हलधर के बीर ॥ ६७७ ॥ | ( अवतरण १ )-इधर तो श्रीराधिकाजी की मान करने की प्रकृति है, और उधर श्रीकृष्णचंद्र की अपराध करने की कुवान नहीं छूटती । एक दिन श्रीराधिकाजी के मान कर के न मानने पर श्रीकृष्णचंद्र भी माघ मान कर अलग बैठ गए, और राधिकाजी इधर अलग भई चढ़ाए बैठी रहीं। उन्हें इंसाने तथा समझाने के निमित्त कोई सखा किसी अन्य सखी से, उन दोन को सुना कर, बडी चातु से, यह वर्धात्मक रसष्ट वाक्य कहती है। उसके वाक्य का पहला अर्थ यह होता है १. चदिए ( ४) । २. धरति ( ३, ५) । ३. लखवी ( २ ) । ४. जुरे (३, ५) । ५. क्याँ घटि ( ५ )।