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बिहारी-रत्नाकर

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२७६ विहारी-रत्नाकर ( अर्थ १ )-[यह ] जोड़ी चिरजीवी हो । [ वह ] गहरे स्नेह से क्यों न जुड़े, [ क्योंकि इन दोनों में से ] घट कर कौन है ( अर्थात् दोनों ही बराबर श्रेष्ठ हैं ) । यह [तो ] वृषभानुजी [ ऐसे महापुरुष]:की बेटी हैं, [ और ] वह हलधर ( वलदेवजी ) [ ऐसे प्रभावशाली पुरुष ] के भाई ॥ इस अर्थ से सखा दान की शिष्टजनोचित प्रशंसा करती हुई कहती है कि ये दोनों ही परम श्रेष्ठ हैं। अतः ये यद्यपि क्षण मात्र के निमित्त परस्पर रुष्ट हो गए हैं, तो क्या हुआ-इनमें गंभीर प्रेम शीघ्र ही जुड़ जायगा, जैसा कि उत्तम पुरुषों में होता है । इस कथन से वह दोन को बढ़ावा दे कर उनका मान तथा माप छुड़ाना चाहती है । ( अवतरण २ )-ऊपर लिखे हुए अर्थ से तो सख ने प्रशंसा की, पर सखियाँ मुलगी तथा ढीठ तो होती ही हैं, अतः वह, नीचे लिखे हुए दूसरे अर्थ से, उन दोनों को तप्त तथा उग्र-प्रकृति कह कर यह व्यंत्रित करती है कि ऐसे नित्य के मान तथा माघ से गंभीर स्नेह कः जुड़ना असंभव है, अतः एक का इतना शीघ्र श.घ्र मान करना और दूसरे का अपराध करने की कुवान न छोड़ना श्रीर उस पर भी माष मान ( अ २ )-[ इन दोनों की ] जोड़ी चिरजीवी हो । [ यह जोड़ी ] गंभीर ( चिरस्थायी ) स्नेह से क्यों न जुड़े (अर्थात् चिरस्थायी स्नेह से कैसे जुड़ सकती है ); [ क्योंकि इन दोनों में से ] घट कर कौन है ( दोनों ही तो एक से उग्र-स्वभाव तथा असहनशील हैं ), ये तो वृषभानु ( वृष के सूर्य ) की बेटी [अतः तद्गुण अर्थात् प्रचंडता तथा प्रदीप्तता से संपन्न ] हैं , [ और ] वे हलधर ( अर्थात् शेषनाग के अवतार ) के भाई [ अतः उनकी उग्रता तथा असहनशीलता से युक्त ] हैं ॥ | ( अवतरण ३)-ऊपर लिखे हुए दूसरे अर्थ से दोनों के क्रोध, कुबान तथा असहनशीलता के कारण प्रेम के टूटने की संभावना व्यंजित करती हुई सखी अब तीसरे अर्थ से परिहास कर के उन को ऐसे स्वभाव के कारण पशु कहती हुई व्यंत्रित करता है कि न तो यह समझाने से अपने रेप की प्रकृति ही छोड़ती हैं, और न यह कहने सुनने तथा डाट उपर से अपने अवगुण हो । फिर भजः इनमें सज्जन जैसी गंभीर स्नेह कैसे जुई। इनमें पशु का सा क्षणिक प्रेम भले ही हो, पर गंभीर प्रेम का जुड़ना तो असंभव ही है । इस अयं से भी सखी पारेवास-पूर्वक यह शिक्षा देती है कि दोनों को यदि प्रेम का चिरस्थायी रखना अभीष्ट है, तो अपनी अपनी दुष्प्रकृति छेड़ देनी चाहिए | ( अर्थ ३ )-[इन दोनों की जोड़ी चिरजीवी हो । [ यह जोड़ी ] गंभीर (चिरस्थायी) स्नेह से क्यों न जुड़े (अर्थात् चिरस्थायी स्नेह से कैसे जुड़ सकती है ), [ क्योंकि इन दोनों में से ] घट कर कौन है ( दोनों ही तो एक ही से पशुवृत्ति, हठी हैं, अर्थात् समझाने बुझाने से नहीं मानते )। यह तो वृषभानुजा ( वृषभ अर्थात् बैल की अनुजा अर्थात् बहिन ) हैं, [ और वह ] हलधर ( बैल ) के भाई ( अर्थात् दोनों गाय बैल हैं ) ॥ औरै गति, औरै बचन, भयौ बदन-रंगु औरु ।। योसक हैं पिय-चित चढ़ी 'कहें चहूँ हूँ त्यौरु ॥ ६७८ ॥ १. बौ है ( ३ ), चहे हैं (४) ।