सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/३२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२८१
बिहारी-रत्नाकर

________________

बिहारी-रत्नाकर २८१ ( अर्थ )-[ हे सखी !] श्रीयमुनाजी के उस तीर पर [ जहाँ श्रीकृष्णचंद्र के साथ विविध विहार किए गए थे] अब भी (उनके उपस्थित न रहने पर भी ) मन [ उनके स्मरण में निमग्न हो कर ] वही ( जैसा उनकी उपस्थिति में रहता था, वैसा ही ) हो जाता है, [ अतः ] सघन कुंज की छाया [ तथा ] सुरभि-समीर [ जो विरह में दुःखद तथा तापकर होते हैं ] सुखद [ तथा ] शीतल [ हो जाते हैं ] ॥ मोहिँ भरोसौ, रीझिहै उझकि अँाकि इक बार। रूप-रिझावनहारु वह ए नैना रिझवार ॥ ६८२ ॥ रूप-रिझवनहारु = रूप के द्वारा रिझाने वाला । इस पद में तृतीया-तत्पुरुष समास है ॥ ( अवतरण )-इती ने जब नायक के अनुराग की कहानी तथा उसके रूप की प्रशंसा पर नायिका को विशेष ध्यान देते न देखा, तो उसने सोचा कि बात से यहाँ काम 'वाना कठिन है, किसी उपाय से दोने की चार आँखें करा देना चाहिए । सौंदर्य का प्रभाव बड़ा विलक्षण होता है, और अपने आँखों देखने की कुछ बात ही और है । यह सोच कर वह नायिका से कहती है कि नायक इस समय इसी गली मैं तो खड़ा है, तू नैंक झाँक कर देख तो सही| ( अर्थ )-मुझे [ तो ] भरोसा है, [१] एक बार [ही ]उझक के झाँक कर ( झरोखे में से उसे देख कर ) रीझ जायगी । [क्योंकि ] वह [ तो ] रूप ( सौंदर्य ) के द्वारा रिझाने वाला ( लुभा लेने वाला ) है, [और ] ये [ तेरे ] नयन रिझवार ( सौंदर्य पर रीझने वाले, सौंदर्य के गुणग्राहक ) हैं ।। नायिका के नेत्र का विशेषण कवि बड़ी लोक-व्यवहार-चातुरी से रखता है। जब किसी पदार्थ को बेचने वाला किसी धनी के यहाँ जार है, तो प्रायः वह अपना पदार्थ दिखाने के समय करता है कि "देखिए तो सही, यह क्या अच्छी वस्तु है, अपि तो स्वयं इसके गुण के ज्ञाता हैं, मैं आपसे इसकी अधिक प्रशंसा क्या करूँ, आप ही ऐसे गुणज्ञ इस पर रीझते हैं।" भौंहनु त्रासति, मुँह नटति, आँखिनु स लपटाति । हुँचे छुड़ावति करु, ईंची आर्गे आवति जाति ॥ ६८३ ॥ ( अवतरण )-परकीया नायिका, प्रथम मिलाप के समय नायक के हाथ पकड़ने पर, जो चेष्टा कर रही है, उसकी प्रशंसा अंतरंगिनी सखी स्वगत करती है ( अर्थ )-[ वाह वाह ! हमारी प्रवीण सखी इस समय कैसे प्यारे भाव कर रही है।] भौंहों से [ तो वह ] डराती है ( अर्थात् भैहों को तो वह बनावटी रोष से भर कर नायक पर यह भाव प्रकट करती है कि मुझे जो तुम पकड़ते हो, वह अच्छा नहीं है ), [और ] मुँह से नटती है ( नहीं नहीं कहती है), [ पर ] आँखों से लिपटती है ( ऐसी चेष्टा करती है, जिससे प्रतीत होता है कि उसकी आँखें नायक के रूप पर लुभा कर उससे १. एक ही (४) } २. वे ( २ ) । ३. छुड़ावत ( ३, ५ ) ।