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बिहारी-रत्नाकर

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विहारी-रत्नाकर २८६ निकल कर (उभर कर ) बढ़ते हुए [ तथा] गोरे गोरे भुजमूलों के उधर जाते ( खुल जाते ) हुए [ मेरा ] मन लोट (उदर की बलियों ) पर चढ़ते हुए लुट गया ।। अहे, दहेड़ी जिनि धरै, जिनि हूँ लेहि उतारि । नी है छींकै छैवै, ऐसें ई” रहि, नारि ।। ६६९ ॥ ( अवतरण )-छके पर वही रखते समय की नायिका की चेष्टा नायक को बड़ी प्यारी लगी है। वह चाहता है कि उसी अवस्था मैं उसे कुछ देर देखता रहे, अतः वह उससे कहता है . ( अर्थ )-अरी, तु दहेड़ी को [ छाँके पर ] मत रख, [ और ] उतार [ भी ] मत ले [क्योंकि इन दोनों ही क्रियाओं के कर लेने पर तेरी यह प्यारी चेष्टा न रहेगी ]। [१] छीके को छुए हुए ही 'नीकै’ ( अच्छे ढंग से ) है, [अतः ] है नारी, [१] 'ऐसई' (इसी मनोमोहिनी अवस्था में, इसी सुंदर चेष्टा से ) रह ( कुछ देर तक स्थित ग्ह ) ॥ न्हाइ, पहिरि पटु डटि, कियौ बँदी-मिसि परनाम् । इग थलाइ घर कौं चली बिदा किए घनस्याम् ।। ७०० ।। | ( अवतरण )-नायिका यमुना-स्नान करती थी, और श्रीकृष्णचंद्र भी वहाँ खरे उसको देखते और सुरी रहे थे । जब तक नायिका महाने-धोने में लगी रही, तर तक तो दोन पॉखों में सैभमरी कर के रीझते-रिझाते रहे, पर चलते समय नायिका ने यह विचार कि इनका यहाँ उटा जा अच्छा नई, क्योंकि यहाँ अनेक चियाँ नहाने अाती हैं-सभी इनकी मोहिनी मूर्ति पर रीझेगी, और वे भी ऐसे रिझवार है कि बहुत से लगन सगा होगे । इस विचार से उसने, पट इत्यादि पहनने के पश्चात्, घर बसते समय, बँदी सगाने के बहाने उनको प्रणाम कर के, ऑल की सैन-द्वारा वहाँ से विदा कर दिया। यह वृत्तांत त्वरित कर के कोई सखी किसी अन्य सखी से कहती है ( अर्थ )[ देख, यह कैसी चतुर है कि इसने ] स्नान कर के [ अर ] पट पहन सुसज्जित हो, बँदी [ लगाने ] के व्याज से [ हाथों के मस्तक पर ले जा कर ] प्रणाम किया, [एवं ] आँखों को चला कर (उपयुक्त सैन कर के ) घनश्याम ( श्रीकृष्णचंद्र को ) यमुना-तट से हटा कर ) घर चली ॥ | हिंदु मैं प्रणाम करने के लिए दोन हार्थों को मस्तक के समीप ले जाने की चाल है। अतः एक हाथ ॥ वैद वगाने के निमित्त और दूसरे का मुँघट हटाने अथवा अरसी देखने के निमित्त मस्तक पर ले जाना समझना चाहिए । ज्य हैहौं, त्य” होउँगौ हौं, हरि, अपनी चाल । हङ न करी, अति कठिनु है मो तारिबी, गुपाल ।। ७०१ ॥ १. निन ( ५ ) । २. छीको ( २ ), छींकी ( ३ ), छीको (४), श्रीको ( ५ ) । ३. छियो ( २ ) , जुवे (४, ५) । ४. हाँ (२) । ५. किए (२) । ६. चलत ( ३, ५), चलति ( ४ ) । ७. होहुँ ( २ )।