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बिहारी-रत्नाकर

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३६० बिहारी-रत्नाकर ( अवतरण )-अवि अथवा कोई भक्त श्रीकृष्ण चंद्र के वृंदावनविहारी गोपाख-स्वरूप का उपास है। वह अपनी भावना के अनुसार भगवान् को अति कोमलांग समझ कर उनको श्रम नहीं दिया चाहता । इधर वह, अपनी परम दीनता के कारण, अपने को अत्यंत अधम तथा ऐसा महान् पातकी समझता है कि अपने को तारना भगवान् के लिए भी अति कठिन काम मानता है। अतः वह, सचे प्रेम तथा निरपेक्ष भक्ति की उच्च भावना के अनुसार, अपने कष्ट के निवारण के निमित्त भी, अपने भक्ति-भाजन को इतने कठिन काम में हठ कर के प्रवृत्त होने देना नहीं चाहता । भक्ति-भाव से मुग्ध हो कर वह उनका सर्वशक्तिमान् होना भी भूल जादा है - ( अर्थ )-हे हरि ! मैं अपनी चाल ( क्रिया-प्रणाली ) से जैसा हँगा ( होने वाली हँगा ), वैसा हँगा ( हो लँगा अर्थात् अपने भले बुरे कर्म के जो फल होंगे, उन्हें भोग लँगा ) । भेर तारना ( कर्मबंधन से छुड़ाना ) अति कठिन है, [ तुम इस काम में ] हठ मत करो ( हठ कर के प्रवृत्त मत हो ) [ ]कि इसमें तुमको बड़ा श्रम होगा। इसके अतिरिक्त अपने कमोवी अधमता के विचार से मुझे संदेह है कि आपसे भी। कदाचित् यह काम न हो सके ] ॥ परसंत, पोंछत लखि रहतु, लगि कपोल कै ध्यान । करं ले प्यौ पाटल, बिमल प्यारी-पउँए पान ।। ७०२।। पाटल = गुलाबी ।।। ( अवतरण )-नायिका ने नायक के पास सुंदर गुलाबी रंग बिए हुए पान, प्रेमोपहार-रूप से, भेजे हैं। नायक उनको पा कर, सादृश्य के कारण नायिका के कपोत्व के ध्यान मैं निमग्न हो, उन्हें स्पर्श करता तथा उन पर हाथ फेरता हुआ देखता रह जाता है ! उसकी यह दशा पान ने जाने वाली सखी किसी अन्य सखी से, उसके प्रेम का प्राधिक्य व्यंजित करती हुई, कहती है ( अर्थ )-[ नायक के प्रेम का वर्णन में क्या करू.] प्यारी के भेजे हुए गुलाबी [ तथा] विमल पानों को हाथ में ले कर प्रियतम [ उसके ] कपोलों के ध्यान में लग कर ( निमग्न हो ), [ उनको ] स्पर्श करता [ तथा ] पोंछता हुआ, देखता रह जाता है ॥ बामा, भामा, कामिनी कहि बोलौ, प्रानेस । प्यारी कहत खिसात नहिँ पावस चलत बिदेस ।। ७०३ ॥ बामा ( वाम )-इस शब्द का अर्थ सुंदर स्त्री है । पर वाम का अर्थ टेढ़ा भी होता है, अतः इसका अर्थ कुटिला भी हो सकता है । इस दोहे में नायिका, इस शब्द को साभिप्राय प्रयुक्त कर के, इसका अर्थ कुटिला लेती है । भामा = क्रेाधवती स्त्री । इस शब्द को भी नायिका ने साभिप्राय प्रयुक्त किया है । कामिनी= कामयुक्त सी । यहा इस शब्द का अर्थ स्वार्थिनी लिया गया है, और यह भी साभिप्राय प्रयुक्त हुआ है। ( अवतरण )-नायक वर्षा ऋतु मैं विदेश चखने को उद्यत है, और नायिका को प्यारी' शब्द से संबोधित कर के धैर्य देता है । उसके प्यारी' शब्द प्रयुक्त करने पर नायिका कहती है १. सरसत ( २ )। २. नंदलाल लालच-भरे ताकत तियान यान ( ४ )। ३. पठया ( ३ )।