अर (अँड) = किसी बात के निमित्त हठ-पूर्वक उट जाना। यहाँ 'अर' का अर्थ अपने गौरव के निमित्त हठ करना है॥ बर-परे—'बर' का अर्थ बल है। यहाँ इसका अर्थ उत्साह, उमंग है। अतः 'बर-परे' का अर्थ उमंग से भरे हुए होता है॥ मरक = बढ़ावा, चाँटी॥ होड़ाहोड़ी— होड़ बराबरी करने की स्पृहा—लागडाँट को कहते हैँ। 'होड़ाहोड़ी' का अर्थ परस्पर की लागडाँट होता है॥
(अवतरण)—नवयौवना नायिका की शोभा से रीझ कर नायक, उसकी प्रशंसा करता हुआ, अपने मन में कहता है—
(अर्थ)—[अहा! इस स्त्री के शरीर में यौवनागमन के कारण] उमंग से भरे हुए चित्त, चतुराई और नयन [अपने अपने हठ से नहीँ हटते, [और] होड़ाहोड़ी (परस्पर लागडाॅट कर के) बढ़ चले हैं, मानो मदन ने [इन्हेँ] बढ़ावा दे रक्खा है॥
औरै-ओप कनीनिकनु गनी घनी-सिरताज।
मनीँ[१] धनी के नेह की बनीँ छनीँ पट लाज॥४॥
औरै-ओप = कुछ और ही ओप वाली। गह समस्त पद 'कनीनिकतु' का विशेषण है॥ कनीनिकनु—कनीनिका आँख की पुतली को कहते हैं। 'कनीनिकतु' कनीनिका शब्द के संबंधकारक का बहु वचनांत रूप होता है। इसके पश्चात् की तृतीया की विभक्ति का लोप है, अतः इसका अर्थ कनीनिकाओँ से, अर्थात् कनीनिकाओँ के कारण, हुआ। गनी गिनी गई है, मानी गई है॥ घनी-सिरताज—घनी का अर्थ अनेक होता है। यहाँ इसका अर्थ अनेक सपली है। 'सिरताज' फारसी समस्त शब्द 'सरताज' का रूपांतर है। इसका अर्थ शिरोमणि अर्थात् श्रेष्ठतम होता है। इसलिए 'धनी-सिरताज' का अर्थ अनेक सपलियों में शिरोमणि अर्थात् श्रेष्ठतम पल्ली हुआ। मनीँ (मणि) हीरा, नीलम इत्यादि, अथवा सर्प इत्यादि से निकली हुई मणियोँ। मणियोँ मेँ अनेक प्रकार के प्रभाव माने जाते हैँ। किसी मणि के पहनने से लक्ष्मी की प्राप्ति, किसी से अन्य मनुष्योँ का सम्मोहन इत्यादि जाना जाता है॥ धनी = प्रभु, स्वामी यर्थात् पति॥ मनीं धनी के नेह की—इसका अर्थ पति के स्नेह को आकर्षित करने वाली मणियोँ होता है॥ छनीँ = आच्छादित, छिपी हुई। मणि, मंत्र इत्यादि का प्रमान छिपे रहने पर विशेष होता और खुल जाने पर जाता रहता है। इसी प्रकार लखा से आच्छादित नेत्रोँ मैँ भी आकर्षण शक्ति विशेष होती है। इसीलिए कवि ने कनीनिकाओँ को मणि बना कर लक्षा-रूपी पट से ढाँप रक्खा है॥
(अवतरण)—नवयौवना मुग्धा की आँखोँ की पुतलियोँ मैँ यौवनागमन के कारण कुछ विलक्षण प्रभा तथा लज्जा का संचार हो गया है। उसी की प्रशंसा सखी, उसके हृदय मेँ उत्साह बढ़ाने के निमित्त, करती है—
(अर्थ)—[अब तू अपनी और ही ओप (प्रभा) बाली कनीनिकाओँ के कारण अनेक [सपक्षियोँ] मेँ शिरोमणि गिनी गई है, [क्योंकि ये तेरी कनीनिकाएँ] लज्जा-रूपी पट मेँ छिपी हुई (लिपटी हुई) पति के स्नेह की (पति के स्नेह को तेरी ओर आकर्षित करने वाली) मणियाँ बन गई हैँ॥
- ↑ मनी (१, ४, ५)।