पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/५०

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बिहारी-रत्नाकर

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बिहारी-राकर ( अर्थ )-जिसमें कजल-रूपी शनि [ स्थित ] है, ऐसी चख-रूपी मीन लग्न में, (१. पृथ्वी तथा सूर्य की विशेष स्थिति के समय । २. आँखों के आँखों से मिलने के समय ) शुभ दिन [ नायक के हृदय में ] उत्पन्न स्नेह-रूपी बालक सव देह-रूपी सुदेश (देह-रूपी सुदेश को सार्वभौमि : राज्य) पा कर, राजा बन कर क्यों न [ उस पर ] भोग करे (पूर्ण अधिकार जमावे ) ॥ इस दोहे में सखी नायक के स्नेह की व्यवस्था का वर्णन करती हुई, वाक्यचः तुरी-द्वारा, ‘सुदेस' शब्द के प्रयोग से उसका सुंदर, युवा इत्यादि होना तथा सब' शब्द के प्रयोग से उसके सवंग पर स्नेह का अधिपत्य हो जाना व्यंजित कर के, नायिका के हृदय में रुचि उपजाया चाहती है। सालति है नटसाल सी, क्यौं हूँ निकसति नाँहि ।। मनमथ-नेजा-नोक सी खुभी खुभी जिरी माँहि ॥ ६ ॥ सालति है = चुभ कर पीड़ा देती है ॥ नटसाल ( नष्ट शल्य )= बछ, बाण इत्यादि की अथवा काँटे की नोक, जो टूट कर घाव के भीतर रह जाती है । मनमथ नेजा नोक = कामदेव के भाले की नोक । कई एक टीकाका ने, यह कह कर कि कामदेव के आयुध बाण प्रसिद्ध हैं, अतः ‘मनमथ-नेजा' का अर्थ कामदेव का भाला करने में प्रसिद्धि-विरुद्ध दूषण पड़ता है, ‘मनमथ' का अर्थ मन को मथने वाला अर्थात् पीड़ा देने वाला किया है । पर शृंगार रस के दोहे में ‘मनमथ-नेजा-नोक' का अर्थ कामदेव के भाले की नोक ही करना विशेष सरस है । यद्यपि कामदेव के मुख्य आयुध तो अवश्य बाण ही माने जाते हैं, पर उसके और आयुर्थी–खड्ग, कुंतादि का भी वर्णन कवि करते हैं। अतः उसके भाले का वर्णन दुषित नहीं समझा जा सकता ॥ खुभी= कान मैं पहनने का एक भूषण, जो भाले के फल के आकार का होता है । खुभी= चुभी हुई, धंसी हुई ।। ( अवतरण )-भी पर रीझे हुए नाय के का, नायिका की किसी सखी अथवा दूती से, मिलनोत्कंठा-व्यंजक वचन ( अर्थ )-[ उसकी ] कामदेव के भाले की नोक सी खुभी [ मेरे ] जी में धंसी हुई नटसाल सी सालती ( खटकती ) है, [और] किसी प्रकार निकलती नहीं ॥ जुवति जोन्ह मैं मिलि गई, नैंक न होति लखाइ । सौंधे कैं डोरें लगी अली चली सँग जाइ ॥ ७ ॥ जोन्ह ( ज्योत्स्ना )= चाँदनी ॥ लखाइ = लक्षित ॥ सांधे= सुगंध ।। डोरै = डोरे मैं। जिस प्रकार दीपक की किरणें तार की भाँति चारों ओर फैलती हैं, उसी प्रकार सुगंधित वस्तु की सुगंध के तार बायु के बहाव की ओर प्रसरित होते हैं। इन्हीं तारौं को डोरे कहते हैं ॥ अली= सखी । यदि यह शब्द यहाँ श्लिष्ट माना जाय, तो चमत्कार बढ़ जाता है। एक अर्थ सखी और दूसरा अर्थ भ्रमर करने से इसका अर्थ भ्रमर सी सखी हो जाता है । १. मन ( २ ), हिय ( ४ ) । २. चली अली ( १ )।