पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/५१

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बिहारी-रत्नाकर

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विहारी-रत्नाकर ( अवतरण )-शुक्राभिसारिका नायिका की अंतरंगिनी सखियाँ उसके शरीर की गुराई तथाः सुगंध का वर्णन करती हैं ( अर्थ )-[ देखो, यह ] युवती [ अपनी गौर द्युति के कारण ] चाँदनी में [ कैसी ] मिल गई है [ कि ] किंचिन्मात्र भी लक्षित नहीं होती । अतः उसको दृष्टि द्वारा लक्षित कर के उसके संग चलना असंभव है, पर ] अली ( भ्रमर सी सखी ) [ उसके शरीर की ] सुगंध के डेरे से लगी हुई ( डोरे के सहारे पर ) [ उसके ] संग चली जा रही है ॥


---- हौं रीझी, लखि रीझिहौ छबिहिँ छबीले लाल।

सोनजुही सी होति दुति-मिलंत मालती माल ॥ ८ ॥ दुति-मिलत= द्युति अर्थात् श्राभा से मिलते ही । यह पद समस्त है ।। ( अवतरण )--नायिका की सखी अथवा दूती नायिका के शरीर की सुनहरी आभा की प्रशंसा कर के नायक के हृदय मैं उसके देखने की उत्कंठा उत्पन्न किया चाहती है ( अर्थ )--- म [ तो उस पर ] रीझ गई, [ और तुम भी, ] हे [ अपने को } छबीले [ समझने वाले ] लाल, [ उसकी ] छवि देख कर रीझ जाओगे । [ उसकी गुराई ऐसे पीत वर्ण की है कि उसकी ] आभा से मिलते ही [ उसकी ] माला में [ लगी हुई ] मालती सोनजुही सी [ सुनहरी ] हो जाती है । बहके, सय जिये की कहत, ठौरु कुठौरु लग्नैं न । छिर्न औरै , छिर्न और से, ए छबि छाके नैन ॥ ९ ॥ | बहके= अपने वश से बाहर हुए । छवि-छाके = छांव-रूपी मदिरा से छके हुए । छकना पीने को कहते हैं। पंजाब में अभी तक लोग ‘जल छक लो' का जल पी लो के अर्थ में बोलते हैं। जैसे पियक्कड़ का अर्थ बहुत मदिरा पीने वाला होता है, वैसे ही 'छाके' का अर्थ मांदरा पा कर मतवाल होता है । अतः ‘छाब-छाके' का अर्थ छवि-रूपा मदिरा पी कर मतवाल हुया ।। ( अवतरण )-सखी नायिका से कहती है कि तुझे अपना अनुराग छिपाए रखना चाहिए; इस तरह प्रेमोन्मत्त देव कर लोग तुझे क्या कहँगे । उसकी यह शिक्षा सुन कर पूर्वानुरागिनी नायिका उससे कहती है-- ( अर्थ )--[ मैं क्या करूँ, ] ये छवि-रूपी मदिरा पी कर मतवाले, बहके, [ और इसी कारण ] क्षण क्षण पर और ही और प्रकार के होने वाले नयन जी की सव [ छिपी हुई बाते ] कह देते है ( प्रकाशित कर देते है ), [ और ] ठौर कुठौर (अवसर अनवसर) नहीं देखत ( समझत) ॥ यह बात प्रसिद्ध ही है कि मदिरा पान करने पर मनुष्य अपने जो की सब बातें कह देता है। इसी लिए घोर से उसकी चोरी कहला लेने के लिए उसको प्रायः मदिरा पिला दी जाती है ॥ १. मिलिति ( ५ ) । २. बहके ( २ ) । ३. जी ( ४ ) । ४. छिनु ( १,५)।