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१६ बिहारी-रत्नाकर नहीं आया है, अतः और दोहीं से इसके यथार्थ रूप का पता नहीं चलता । “लीनौ' शब्द अवश्य ४४३वें दोहे में आया है। उसका पाठ भी लीनौ' ही ठहरता है । इसलिए यहाँ ‘दीनौ' ही पाठ रक्खा गया है । ईठि–इष्ट शब्द से ईठ बनता है, जिसका अर्थ मित्र है । उसी का स्त्रीलिंग-रूप 'ईठि' है । इसका अर्थ हितकारिणी, अर्थात् सखी, है ।। दिठौना= काजल इत्यादि की काली टाकी, जो मुख पर इस अभिप्राय से लगा दी जाती है कि कुदृष्टि न लगे ।। ( अवतरण )-दिठौना के कारण नायिक! के मुख पर अधिक शोभा हो जाने का वर्णन नायक, परिहासात्मक वाक्य में, उससे करता है ( अर्थ )-[ तेरी ] सखी ने [ तो तुझे दिठौना ] यों कह कर ( यह विचार कर ) दिया [ कि तेरे ] सलोने ( लावण्यमय ) मुख पर दृष्टि ( कुदृष्टि ) न लगे, [ पर इस ] दिठौना देने से [ तो तेरे मुख की ऐसी शोभा बढ़ गई कि उस पर ] दृष्टि (आँख ) दूनी हो कर ( और भी अधिक ) लगने लगी ( जमने लगी ) ॥ चितवनि रूखे दृगनु की, हाँसी-बिनु मुसकानि । मानु जनायौ मानिनी, जानि लियौ पिय, जानि॥ २९ ॥ हाँसी-बिनु= विना किसी हँसी की बात की ।। ( अवतरण )-मानिनी नायिका की चेष्टा से उसके मान को समझ कर खिसियाए हुए नायक की व्यवस्था सखी सखी से कहती है ( अर्थ )-[ नायिका की ] रूख दृगों की चितवन, [ और नायक की ] विना किसी हँसी की बात ही की मुसकिराहट ( अर्थात् खिसियानपने की मुसकिराहट) से [१] समझ ले कि मानिनी ने [ तो ] मान जनाया, [ और ] प्रियतम ने [ उसका यह मान जनाना ] जान लिया ( समझ लिया ) ॥ | सब ही त्यौं समुहात छिनु, चलति सबनु है पीठि।। वाही त्यँ ठहराति यह, कविलनैवी लौं, दीठि ॥ ३० ॥ त्य = श्रोर ॥ समुहाति=सामने होती है । कविलनवी-- पाँचो प्राचीन पुस्तकों के अनुसार इस शब्द का पाठ यही अर्थात् 'कविलनवी' ठीक ठहरता है। बिहारी के सबसे पहिले टीकाकार मानसिंह ने इसका अर्थ यह लिखा है-“कविलनवी, कठपुतरी श्रीसीताजी की मूर्ति श्रीराम चित्र-पट मैं देखि पीठि फेरै । कृष्ण कवि का पाठ तो निश्चित रूप से नहीं ज्ञात होता, पर उन्होंने इस शब्द का अर्थ मंत्र की कटोरी' किया है। जब किसी की कोई वस्तु चोरी जाती है, तो उसका पता लगाने के लिए वे लोग, जिन पर संदेह होता है, मंडल बाँध कर बैठा दिए जाते हैं, और उनके बीच में एक कटोरी जल भर कर रख दी जाती है । तांत्रिक के मंत्र पदने पर वह कटोरी चलायमान होती है, और सबकी ओर जा जा कर लौट आती है । पर जो उनमें से चोर होता है, उसके सामने ठहर जाती है । यह क्रिया अब भी कोई कोई करते हैं । इसको कटोरी चलाना कहते हैं। १. मुसुकानि ( १ ) । २. सौं ( २ )। ३. कवलनबी ( ४ ), कवलनवी ( ५ )।