पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/६९

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बिहारी-रत्नाकर

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२६ बिहारी-रत्नाकर साजे मोहन-मोह कौं, मोहीं करत कुचैन । कहा करौं, उलटे परे टोने लोने नैन ।। ४७ ॥ साजे = किसी कार्य विशेष के उपयुक्त बनाए । कुचैन = विकल ।। टोने =जादू । विशेषतः दृष्टिद्वारा किसी पर प्रभाव डालने की क्रिया, अथवा उस डाले हुए प्रभाव, को टोना कहते हैं । लोने= लुनाए हुए, लवण दिए हुए, लवण-द्वारा तुष्ट किए हुए, नायक के लावण्य-द्वारा उसके पक्ष में किए हुए । जब किसी पर टोने अथवा कुदृष्टि का प्रभाव प्रतीत होता है, तो लवण शोर राई अथवा केवल लवण उस पर से वार कर टोने के निमित्त फेंक अथवा अग्नि में डाल दिया जाता है । इस क्रिया को स्त्रियां राई-नोन करना अथवा लोनाना | इस लोनाने से टोना लोट जाता है, ग्रोर जो प्रभाव टोना करने वाला किसी पर डालना चाहता है, वही स्वयं करने वाले पर, उसकी ग्रोर से, पड़ जाता है । यही टोने का उलटना कहलाता है ॥ ( अवतरण ) -पुर्वानुरागिनी नायिका का वचन अंतरंगिनो सखी से-- ( अर्थ )-[मं ने तो अपने नयन ] मोहन के मोहने को [ उपयुक्त उपस्करणों, अंजन, तिलाछ आदि, से] सुसज्जित किए, [पर ये तो मोहन को मोहने के पलटे] मुझी को [मोहन पर मोहित कर के ] विकल किए डालते हैं। [ अब मैं ] क्या करू, [ मोहन के लावण्य से] लोने हुए (लोनाए जा कर) [ मेरे ] नयन उलटे टोने [ हो कर मुझी पर ] पड़े ॥ याकै उर औरै कछु लगी बिरह की लाइ । | पजरै नीर गुलाब कैं, पिय की बात बुझाइ ॥ ४८ ॥ औरै कळू=कुछ विलक्षण प्रकार की ।। लाइ = लवर, अग्नि । पजरै= प्रज्वलित होती है । वात= (1) वार्ता । (२) वायु ।। ( अवतरण )-विरहिनो नायिका की व्यवस्था सखियाँ प्रापस मैं कहती हैं ( अर्थ )-इसके हृदय में विरह की कुछ विलक्षण आग लगी है, [ जो ] गुलाव-जल [ छिड़कने ] से [ ते ] प्रज्वलित होती है, [ और ] प्रियतम की वात ( चर्चा-रूपी वायु ) से बुझती है ॥ विलक्षणता यह है कि सामान्य अग्नि तो जल से बुझती र वायु से प्रज्वलित होती है, पर यह अग्नि जल से प्रज्वलित होनी एवं वात ( वायु ) से तुझती है ॥ - कहा लेगे खेल दें, तजौ अटपटी बात । नैंक हँसही हैं भई मैं हैं, सॉहैं खात ॥ ४९ ॥ खेल १-१' यहां करणकारकार्थक है । 'खेल पें' का अर्थ खेल से होता है । अटपटी = कुढंगी । ( अवतरण ) -नायिका ने मान किया था । सखी बड़ी कठिनता से, शपथ खा खा कर, उसको कुछ दंग पर जा रही थी । इतने मैं मायक ने उसी स्त्री का नाम ले लिया, जिसकी ईर्षा से मान हुआ। था । सखी, यह सोच कर कि कहीं मान फिर न बढ़ जाय, वो वाक्यचातुरी से, नायक के उस नाम १. करी ( २ ) । २. टौने ( २, ५ ) । ३. लौने ( २, ५)।