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पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/८७

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बिहारी-रत्नाकर

बिहारी-रवाकर - तंत्रनाद, कबिसरस, सरस रागरतिरंग । अनबूड़े बूड़े, त ' जे बूढ़े सब अंग ॥ १४ ॥ तंत्रीनाद =वीणा इत्यादि का मधुर स्वर ॥ कबिलरस = काव्य का स्वाद ॥ सरस राग = रसला स्नेह अथवा रसीला गाना ॥ रति-रंग =प्रीति का अथवा स्त्री-संग का आनंद ॥ अनबूड़े-इस शब्द का अर्थ यहाँ श्रधबूत है । बूढ़े सब अंगपद के विरोध से अनबूड़े में श्रन' का प्रयोग ईषद् अर्थ में मानना चाहिए । विरोधा मास प्रकार के निमित्त विहारी ने ‘ग्रधड़े बूड़ेन रख कर घनबूड़े बूढ़ेरक्खा है । अनबूढ़ेका अर्थ होता है। ऐसे लोग, जो कि तंत्रीनाद इत्यादि में हाथ तो डालते हैं , पर उसमें डूब नहीं हैं 7 बूढ़े = , नष्ट हुए ॥ तरे = बन गए, श्रेष्ठ हो गए ॥ बूड़े निमग्न हो गए, लिप्त हो गए ॥ सब अंग = सर्वागपूर्ण रीति से ॥ ( अवतरण )--कवि की प्रास्ताविक डाक् है ( अर्थ )--नाद, कबिसरस, सरस राग तथा रति-रंग में [ जI अधबूड़े [ हैं, वे तो ] बड़े ( नष्ट हो गए ), [ पर ] जो पूर्ण रीति से बड़े ( प्रविष्ट हुए ), [ वे ] तरे ( प्राप्ताभीष्ट हुएसुधर गए ) [ कधि का तात्पर्य यह है कि तंत्र नाद इत्यादि पदार्थ ऐसे हैं, जिनमें विना पूर्ण रीति से प्रविष्ट हुए कोई आनंद नहीं मिलता । यदि इनमें पड़ना हो, तो पूर्णतया पहोनहीं तो इनसे दूर ही रहो]। सहज साकिन, स्यामरुचि, सुचि, सुगंधसुकुमार । गनतु न मनु पशु अपथ, लारि विद्यु, सुथरे बार ॥ १५ ॥ सहज सचिक्कन = स्वभाव ही से चिकने, विना फुलेल इत्यादि लगाए ही चिकने ॥ स्याम-रुचि = श्याम रंग वाले ॥ सुधि ( शुचि ) अमल ॥ सुकुमार कोमल ॥ गनतु न= नहीं गिनता, नहाँ विचा रता ॥ पड= अच्छा रास्ता ॥ अपथ= बुरा पथ ॥ बिथुरे =फेल , छिटके हुए ॥ सुथरे सुंदर ॥ ( अवतरण )-नायिका के बालों पर रीझा हुआा नायक अपना नियकर्तव्य भूल कर उन्हीं के यान में तथा नायिका से मि लने की चिंता में निमग्न रद्द ता है । यह वृत्तांत जान कर उसका कोई अंत- रंग मित्र उसे समझाता है कि यह मार्ग तुम्हारे लिए अच्छा नहीं है, तुम्हें अपनी कुल-ीति पर चलना चाहिए। नायक उसे उत्तर देता है ( अर्थ )[ उसके ] स्वभाव ही से चिकने, कालेअमलमनोहर गंध वाले, कोमल बिधूरे[ और ] सुथरे बालों को देख कर [ मेरा] मन [ ऐसा मोहित हो गया है कि ] पथ [ और ] अपथ कुछ नहीं गिनता ॥ मुखति दुईि दुरंति नहैिं, प्रगट करांति रति-रूप । पक, औरें उठी लाली आठ अनूप ॥ ३६ ॥ प्रगट करति रतरूप =रति का रूप श्रत् चिह्न प्रकट करती हुई । यह खंडवाक्य 'लाली' का विशेषण है। । १. तिरे (४, ५ )। २. सुरति (२, ४ )। ३. दुराए (४ )। ४. ना दुराति (४ )। ५. होत (४ ) ।