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सटीक : बेनीपुरी
 

तब=उस समय। अमी=अमृत। इक आँकु=निश्चय। डीठि=नजर। ह्वै=होकर। डाँकु=डंक।

उस समय देखादेखी होने पर जो निश्च य अमृत मालूम हुई थी (वही तुम्हारी) तिरछी नजर अब बिच्छू का डंक होकर लगती है—बिच्छू के डंक के समान व्याकुल करती है।

लाल तुम्हारे रूप की कहौ रीति यह कौन।
जासों लागैं पलकु दृग लागत पलक पलौ न॥२०९॥

अन्वय—लाल तुम्हारे रूप की, कहौ यह कौन रीति। जा सों पलकु दृग लागैं पलौ पलकु न लागत।

लाल=प्यारे, नायक, नन्दलाल श्रीकृष्ण। जासौं=जिससे। पलकु=पल+एकु= एक पल। पलौ=पल-भर के लिए भी।

हे लाल! तुम्हारे रूप की, बतायो, यह कौन-सी रीति है कि जिससे एक पल के लिए भी आँखें लग जाने पर—एक क्षण के लिए भी जिसे देख लेने पर—फिर पल-भर के लिए भी पलक नहीं लगती—नींद नहीं पड़ती।

अपनी गरजनु बोलियतु कहा निहोरो तोहिं।
तूँ प्यारो मो जीय कौ मोज्यौ प्यारो मोहिं॥२१०॥

अन्वय—अपनी गरजनु बोलियतु तोहिं निहोरी कहा। तूँ मो जीय को प्यारो मो ज्यौ मोहिं प्यारो।

गरजनु=गरज से। निहोरो=उपकार, एहसान। मो=मेरे। जीय=प्राण। ज्यौं=जीव, प्राण। मोहिं = मुझे।

(मैं तुमसे) अपनी गरज से ही बोलती हूँ, इसमें तुम्हारे ऊपर मेरा कोई उपकार नहीं है, (क्योंकि) तुम मेरे प्राणों के प्यारे हो, और मेरे प्राण मुझे प्यारे हैं। (अतएव, अपने प्राणों की रक्षा के लिए ही मुझे बोलना पड़ता है।)

सुख सौं बीती सब निसा मनु सोये मिलि साथ।
मृका मेलि गहे सु छिनु हाथ न छोड़ै हाथ॥२११॥

अन्वय—सब निसा सुख सौ बीती मनु साथ मिलि सोए। मूका मेलि सु छिन गहे हाथ हाथ न छोड़ै।