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बिहारी-सतसई
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सों से। मनु=मानो। मिलि साथ=गाढ़ालिंगन में बद्ध। मूका मेलि=मुट्ठी बाँधकर। गहे=पकड़े।

सारी रात (स्वप्न में) सुख से बीती। मानो (नायक) साथ ही मिलकर सोया हो। (स्वप्न में ही) मुट्ठी बाँधकर जो एक क्षण के लिए पकड़ा, सो (अब नींद टूटने पर भी) हाथ को हाथ नहीं छोड़ता—(नायिका) अपने ही हाथ को प्रीतम का हाथ समझकर नहीं छोड़ती।

नोट—स्वप्न में नायिका अपने ही हाथों को पकड़े हुई प्रियतम के आलिंगन का मजा लूट रही थी। इतने में उसकी नींद टूट गई। अब जगने पर मुट्ठी नहीं खुलती। दोनों हाथ परस्पर जकड़े हुए हैं। जाग्रत अवस्था में भी स्वप्न का भान हो रहा है।

देखौं जागत वैसियै साँकर लगी कपाट।
कित ह्वै आवतु जातु भजि को जानै किहिं बाट॥२१२॥

अन्वय—जागत देखौं वैसियै कपाट साँकर लगी। कित ह्वै आवतु किहिं बाट भजि जातु को जानै।

जागत=जगकर। साँकर=जंजीर। कपाट=किवाड़। कित ह्वै=किस ओर होकर, किधर से। भजि=भागना। बाट=रास्ता।

जगकर देखती हूँ तो किवाड़ में पहले की तरह ही जंजीर लगी रहती है (जैसे रात को बंद करके सोई थी), किधर से आते हैं (और) किस रास्ते भाग जाते हैं, (यह) कौन जाने?

नोट—यह स्वप्न दशा का वर्णन है। उस्ताद जौक ने लिखा है—

खुलता नहीं दिल बन्द ही रहता है हमेशा।
क्या जाने कि आ जाता है तू इसमें किधर से॥

गुड़ी उड़ी लखि लाल की अँगना अँगना माँह।
बौरी लौं दौरी फिरति छुअति छबीली छाँह॥२१३॥

अन्वय—लाल की गुड़ी उड़ी लखि छबीली अँगना अँगना माँह बौरी लौं दौरी फिरति छबीली छाँह छुअति।