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सटीक : बेनीपुरी
 

मैंने तुमसे कई बार कहा (कि) तुम इन्हें मत पतिआओ—इनका विश्वास न करो। (किन्तु तुमने न माना, अब देखो, इन) आँखों ने लगालगी करके—मिल-मिला करके—(तुम्हारे) हृदय में आग लगा दी—तुम्हारे हृदय में चोर पहुँचने के लिए सेंध लगा दी।

सनु सूक्यौ बीत्यौ बनौ ऊखौ लई उखारि।
हरी-हरी अरहरि अजौं धर धरहरि जिय नारि॥२७५॥

अन्वय—सनु सूक्यौ, बनौ बीत्यौ, ऊखौ उखारि लई; अजौं अरहरि हरी-हरी, नारि-जिय धरहरि धर।

सूक्यौ=सूख गया। बनौ=(बिनौला) कपास। अरहरि=अरहर; रहरी। अजौं= =अब तक। धरहरि=धैर्य।

सन सूख गया, कपास भी बीत चुकी, ऊख भी उखाड़ ली गई। (यों तुम्हारे गुप्त-मिलन के सभी स्थान नष्ट हो गये, किन्तु) अब तक अरहर हरी-हरी है। (इसलिए) हे बाला! हृदय में धैर्य धारण करो (क्योंकि कम-से-कम एक गुप्त स्थान तो अभी तक कायम है।)

नोट—सन, कपास, ऊख और अरहर की खड़ी फसल वाला खेत खूब घना और गुप्त एकान्त स्थान के समान होता है। यह देहाती नायिका मालूम होती है; क्योंकि ऐसे स्थान में देहाती नायिकाएँ ही अपना मिलन-मंदिर बनाती हैं।

जौ वाके तन को दसा देख्यौ चाहत आपु।
तौ बलि नैंकु बिलोकियै चलि अचकाँ चुपचापु॥२७६॥

अन्वय—जौ वाके तन की दसा आपु देख्यौ चाहत, तौ बलि नैंकु चुपचापु अचकाँ चलि बिलोकियै।

वाके=उसके। बलि=बलैया लेती है। नेंकु=जरा। बिलोकियै=देखिए। अचकाँ=अचानक। चुपचापु=चोरी-चुपके से।

यदि उसके (विरह में व्याकुल नायिका के) शरीर की (यथार्थ) दशा आप देखना चाहते हैं तो, मैं बलैया लेती हूँ, जरा चुपचाप अचानक चलकर उसे देखिए (नहीं तो आपके आगमन की बात सुनते ही वह आनन्दित हो उठेगी और आप उसकी यथार्थ अवस्था नहीं देख सकेंगे।)