पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/१२९

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१०९ सटीक : बेनीपुरी मैंने तुमसे कई बार कहा (कि) तुम इन्हें मत पतिआओ-इनका विश्वास न करो । (किन्तु तुमने न माना, अब देखो, इन ) आँखों ने लगालगी करके- मिल-मिला करके-(तुम्हारे) हृदय में आग लगा दी-तुम्हारे हृदय में चोर पहुँचने के लिए सेंध लगा दी। सनु सूक्यौ बीत्यौ बनौ ऊखौ लई उखारि । हरी-हरी अरहरि अजौं धर धरहरि जिय नारि ।। २७५ ।। अन्वय-सनु सूक्यौ, बनौ बीत्यौ, ऊखौ उखारि लई; अौं अरहरि हरी-हरी, नारि-जिय धरहरि धर । सूक्यौ= = सूख गया । बनौ =(बिनौला) कपास । अरहरि = अरहर रहरी । अजौ =अब तक । धरहरि =धैर्य । सन सूख गया, कपास मी बीत चुकी, ऊख भी उखाड़ ली गई । (यों तुम्हारे गुप्त-मिलन के सभी स्थान नष्ट हो गये, किन्तु) अब तक अरहर हरी-हरा है। (इसलिए) हे बाला! हृदय में धैर्य धारण करो (क्योंकि कम-से-कम एक गुप्त स्थान तो अभी तक कायम है।) नोट-सन, कपास, ऊख और अरहर की खड़ी फसल वाला खेत खूब घना और गुप्त एकान्त स्थान के समान होता है । यह देहाती नायिका मालूम होती है; क्योंकि ऐसे स्थान में देहाती नायिकाएँ ही अपना मिलन मंदिर बनाती हैं। जो वाके तन को दसा देख्यौ चाहत आपु । तो बलि नैंकु विलोकिय चलि अचकाँ चुपचापु ।। २७६ ।। अन्वय--जो वाके तन की दसा आपु देख्यो चाहत, तो बलि नैंकु चुपचापु अचका चलि बिलोकियै । वाके = उसके। बलि = बलैया लेती है । न कु =जरा । बिलोकिय= देखिए। अचकाँ: '=अचानक । चुपचापु=चोरी-चुपके से । यदि उसके (विरह में व्याकुल नायिका के ) शरीर की ( यथार्थ) दशा श्रार देखना चाहते हैं नो, मैं बलया लती हूँ, जरा चुपचाप अचानक चलकर उसे देखिए ( नहीं तो आपके आगमन की बात सुनते ही वह आनन्दित हो उठेगी और श्राप उसकी यथार्थ अवस्था नहीं देख सकेंगे।) ।