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सटीक : बेनीपुरी
 

वैसे ही गोरी गोपी के गात में रोमांच उठ आये। (कोमलांगी के रोमांच की उपमा कदम्ब कुसुम से देते हैं, जैसे वीरों के रण-रोमांच की पनस-फल से)

हे बाले! मैंने तुम्हीं में ऐसी अपूर्व भक्ति देखी है। (क्योंकि ठाकुरजी की) प्रसाद की माला पाकर तुम्हारी देह की कदम्ब की माला (रोमांचित) हो गई!

नोट—नायक ने चुपके-से अपनी माला भेजी, जिसे नायिका ने सखियों के सामने ठाकुरजी की प्रसाद की माला कहकर पहन लिया। माला पहनते ही शरीर पुलकित हो उठा। इसपर चतुर सखी चुटकी लेती है कि ऐसी अपूर्व ईश्वर-भक्ति किसी और नवयुवती में नहीं देखी गई; क्योंकि नवयुवती में तो पतिप्रेम ही होता है, ईश्वर-प्रेम तो वृद्धा में देखा जाता है।

ढोरी लाई सुनन की कहि गोरी मुसकात।
थोरो-थोरी सकुच सौं भोरी-भोरी बात॥२९४॥

अन्वय—थोरी-थोरी सकुच सौं भोरी-भोरी बात कहि गोरी मुसकात, सुनन की ढोरी लाई।

ढोरी लाई=आदत लगा ली। सकुच=लाज। सौं=से।

थोड़ी-थोड़ी, लज्जा से, भोरी-भोरी बात कहकर वह गोरी मुसकाता है— लजा के कारण अधिक कह नहीं सकती, अतएव भोली-भोली बातें थोड़ी-थोड़ी कहकर ही मुस्कुरा पड़ती है। (इस चेष्टा से कही गई उसकी बातें) सुनने की मैंने आदत-सी लगा ली है—बिना सुने चैन ही नहीं पड़ता।

चितु दै चितै चकोर त्यौं तीजै भजै न भूख।
चिनगी चुगै अंगार को चुगै कि चन्द-मयूख॥२९५॥

अन्वय—चकोर त्यौं चितु दै चितै, भूख तीजैं न भजै! अंगार की चिनगी चुगै कि चन्द-मयूख चुगै।

चितै=देखो। तीजैं=तीसरे को। भजै न भूख=भूख लगने पर भी (किसी और को) ध्यान में नहीं लाता। मयूख=किरण।

चकोर (मुखचन्द्र-प्रेमी नायक) की ओर चित्त देकर देखो—उसकी दशा पर अच्छी तरह विचार करो। वह भूख लगने (तीव्र मिलनोत्कंठा होने) पर भी तीसरे को नहीं भजता। या तो आग (विरहाग्नि) की चिनगारी चुगकर खाता