पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/१३७

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११७ सटीक : बेनीपुरी चैसे ही गोरी गोपी के गात में रोमांच उठ आये। (कोमलांगी के रोमांच को उपमा कदम्ब कुमुम से देते हैं, जैसे वीरों के रण-रोमांच की पनस-फल से) हे बाले ! मैंने तुम्हीं में ऐसी अपूर्व मक्ति देखी है । (क्योंकि ठाकुरजी की) प्रसाद की माला पाकर तुम्हारी देह की कदम्ब की माला ( रोमांचित ) हो गई ! नोट - नायक ने चुपके-से अपनी माला भेजी, जिसे नायिका ने सखियों के सामने ठाकुरजी की प्रसाद की माला कहकर पहन लिया । माला पहनते ही शरोर पुलकित हो उठा। इसपर चतुर सखी चुटकी लेती है कि ऐसी अपूर्व ईश्वर-भक्ति किसी और नवयुवती में नहीं देखी गई; क्योंकि नवयुवती में तो पतिप्रेम ही होता है, ईश्वर-प्रेम तो वृद्धा में देखा जाता है । ढोरी लाई सुनन को कहि गोरी मुसकात । थोरो-थोरी सकुच सौं भोरी-भोरी बात ।। २९४ ।। अन्वय-थोरी-थोरी सकुच सौं भोरी-मोरी बात कहि गोरी मुसकात, सुनन की दोरी लाई। ढोरी लाई = आदत लगा ली । सकुच =लाज । सौं=से ! थोड़ी-थोड़ो, लज्जा से, मोली-मोली बात कहकर वह गोरी मुसकाता है- लजा के कारण अधिक कह नहीं सकती, अतएव भोली-मोली बातें थोड़ी-योड़ी कहकर ही मुस्कुरा पड़ती है। (इस चेष्टा से कही गई उसकी बातें ) सुनने की मैंने श्रादत-सी लगा ली है-विना सुने चैन ही नहीं पड़ता। चितु दै चितै चकोर त्यौं तीजै भजै न भूख । चिनगी चुगै अंगार को चुगै कि चन्द-मयूख ।। २९५ ।। अन्वय-चकोर त्यौं चितु दे चितै, भूख तीजै न मजै ! अंगार की चिनगी चुग कि चन्द-मयूख चुर्ग। चितै =देखो । तीज =तीसरे को। भजै न भूख = भूख लगने पर भी (किसी और को ) ध्यान में नहीं लाता । मयूख किरण । चकोर (मुखचन्द्र-प्रेमी नायक ) की ओर चित्त देकर देखो-उसकी दशा पर अच्छी तरह विचार करो। वह भूख लगने (तीव्र मिलनोत्कंठा होने) पर मी नीमरे को नहीं भजता। या तो आग (विरहाग्नि) की चिनगारी चुगकर खान -