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बिहारी-सतसई
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चतुर्थ शतक

हितु करि तुम पठयौ लगैं वा बिजना की बाइ।
टली तपनि तन की तऊ चली पसीना न्हाइ॥३०१॥

अन्वय—तुम हितु करि पठयौ, वा बिजना की बाइक लगैं तन की तपनि टली, तऊ पसीना न्हाइ चली।

पठयौ=पठाया, भेजा। बिजना=पंखा। बाइ=हवा। टली=दूर हुई। तपनि=जलन, ताप। तऊ=तो भी। न्हाइ चली=शराबोर हो गई।

तुमने हित करके (पंखा) भेजा। उस पंखे की हवा लगने से (उसके) शरीर की जलन तो दूर हो गई—शरीर की (विरहाग्नि) ज्वाला तो शान्त हो गई, तो भी (तुम्हारा प्रेम स्मरण कर) वह पसीने से नहा गई—प्रेमावेश में उसका शरीर पसीने से तर हो (पसीज) गया।

नाँउ सुनत ही ह्वै गयौ तनु औरै मनु और।
दबै नहीं चित चढ़ि रह्यौ अब चढ़ाऐं त्यौर॥३०२॥

अन्वय—नाँउ सुनत ही तनु औरै मनु और ह्वै गयौ। चित चढ़ि रह्यौ अबै त्यौर चढ़ाऐं नहीं दबै।

दबै=छिपे। चित चढ़ि रह्यौ=हृदय में रम रहा है। चढ़ाऐं त्यौर=त्यौरियाँ (भौंह) चढ़ाने से, क्रोध प्रकट करने से।

(नायक का) नाम सुनते ही (तुम्हारा) शरीर कुछ और हो गया, मन कुछ और हो गया—शरीर और मन (दोनों) में विचित्र परिवर्त्तन हो गया। वह चित्त में चढ़े हुए (नायक) का प्रेम अब त्यौरियाँ चढ़ाने से (क्रोध दिखलाने से) नहीं छिप सकता।

नैकौ उहिं न जुदी करी हरषि जु दी तुम माल।
उर तैं बास छुट्यौ नहीं बास छुटै हूँ लाल॥३०३॥

अन्वय—हरषि जु तुम माल दी, उहिं नैकौ जुदी न करी। लाल बास छुटै हूँ उर तैं बास नहीं छुट्यौ।