बाई बिहारी-सतसई १२० चतुर्थ शतक हितु करि तुम पठयौ लगै वा बिजना की बाइ । टली तपनि तन की तऊ चली पसीना न्हाइ ।। ३०१॥ अन्वय-तुम हितु करि पठयो, वा बिजना की तन की नपनि टली, तऊ पसीना न्हाइ चली। पठयो= पठाया, भेजा । बिजना =पंखा । बाइ=हवा । टली =दूर हुई। तपनि =जलन, ताप । तऊ=तो भी । न्हाइ चली=शराबोर हो गई। तुमने हित करके (पंखा) भेजा । उस पंखे की हवा लगने से ( उसके) शरीर की जलन तो दूर हो गई-शरीर की (विरहाग्नि) ज्वाला तो शान्त हो गई, तो मी ( तुम्हारा प्रेम स्मरण कर) वह पसीने से नहा गई-प्रेमावेश में उसका शरीर पसीने से तर हो (पसीज) गया । नाँउ सुनत ही है गयौ तनु औरै मनु और । दबै नहीं चित चढ़ि रह्यो अब चढ़ाएँ त्यौर ॥ ३०२ ।। सुनत ही तनु औरै और कै गयौ । चित चढ़ि रह्यो अबै त्यौर चढ़ाएं नहीं दबै । दबै =छिपे। चित चढ़ि रह्यौ = हृदय में रम रहा है। चढ़ाऐं त्यौर = त्यौरियाँ (भौंह ) चढ़ाने से, क्रोध प्रकट करने से । (नायक का) नाम सुनते ही ( तुम्हारा) शरीर कुछ और हो गया, मन कुछ और हो गया-शरीर और मन (दोनों) में विचित्र परिवर्तन हो गया। वह चित्त में चढ़े हुए (नायक) का प्रेम अब त्यौरियाँ चढ़ाने से ( क्रोध दिख- लाने से ) नहीं छिप सकता । नैको उहिं न जुदी करी हरषि जु दी तुम माल । उर तै बास छुट्यौ नहीं बास छुटै हूँ लाल ॥ ३०३ ।। अन्वय-हरषि जु तुम माल दी, उहिं नैको जुदी न करी । लाल बास छुटै हूँ उर तै बास नहीं छुट्यौ । अन्वय-नाँउ मनु ।