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बिहारी-सतसई
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अन्वय―मावतो भेटत न बनै अति प्यार चितु तरसतु, भूषन बसन हथ्यार उर लगाइ-लगाइ धरति।

भावतो= प्यारे। तरसतु= ललचता है। बसन= कपड़े। उर= हृदय।

अपने प्यारे से भेंटते नहीं बनता―दिन होने के कारण गुरुजनों के सम्मुख भेंट नहीं कर पाती―और अत्यन्त प्रेम के कारण चित्त तरस रहा है। (अतएव उनके) गहनों, कपड़ों और हथियारों को हृदय से लगा-लगाकर रखती है।

नोट―सैनिक पति बहुत दिनों पर घर लौटा है। दिन होने के कारण वह बाहर की बैठक में ही रह गया और अपने आभूषण, वस्त्र और अस्त्र-शस्त्र घर भेज दिये। उस समय उसकी स्त्री की दशा का वर्णन इस दोहे में है।

कोरि जतन कोऊ करौ तन को तपनि न जाइ।
जौ लौं भीजे चीर लौं रहै न प्यौ लपटाइ॥३३०॥

अन्वय―कोरि जतन कोऊ करौ तन की तपनि न जाइ जो लौं भीजे चीर लौं प्यौ लपटाइ न रहै।

कोरि= करोड़। तपनि= ताप, ज्वाला। जौ लौं= जब तक। भीजे चीर= तर या गीला कपड़ा। लौ= समान। प्यो= प्रिय, प्रीतप।

करोड़ों यत्न कोई क्यों न करो, किन्तु उस (वियोगिनी) के शरीर की ज्वाला न जायगी―(विरहाग्नि) नहीं शान्त होगी। जबतक कि भींगे हुए चीर के समान (उसका) प्रीतम (उससे) लिपटकर न रहे।

तनक झूँँठ नसवादिली कौन बात परि जाइ।
तिय मुख रति-आरम्भ की नहिं झूठियै मिठाइ॥३३१॥

अन्वय―तनक झूठ नसवादिली बात पर कौन जाइ तिय मुख रतिआरम्भ की नहिं झूठियै मिठाइ।

तनक= थोड़ा। नसवादिली= निस्वादु, बेमजा। तिय= स्त्री। रति= समागम, सम्भोग। मिठाइ= मीठी लगती है। झूठियै= झूठी भी।

“थोड़ा झूठ भी बेमजा है”―(इस) बात पर कौन जाय―कौन भूले। स्त्री के मुख से समागम के आरम्भ में (निकली हुई) ‘नहीं’ झूठी भी मीठी लगती है।