पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/१६४

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विहारी-सतसई १४४ के कारण इसके) नँह में लगाई गई (मेहँदी) छुटी जाती है, एक क्षण के लिए भी तो इस मेहँदी को सूखने दो । बाम तमासो करि रही बिबस बारुनी सेइ । मुकति हँसति हँसि हँसि मुकति झुकि झुकि हँसि हँसि देइ ॥ ३५८ ।। . अन्वय-बारुनी सेइ विवस वाम तमासो करि रही । सुरुति हँसति हँसि हँसि झुकति झुकि झुकि हँसि हँसि देह । बाम - युवती स्त्रो । तमासो= तमाशा, भावभंगी। बारुनी = मदिरा । सेह = सेवन कर, पीकर | झुकि-मुकि = लचक के साथ गिर-गिरकर । शराब पीकर बेबस हो वह युवती तमाशा कर रही है-विचित्र हावभाव दिखा रही है । ( नशे के झोंक में ) झुकता (लड़खड़ाकर गिरती) है, हँसती है, (फिर) हँस-हँसकर झुकती और झुक-झुककर हँस-हँस (खिलखिला) पड़ती है। 165 हँसि-हँसि हेरति नवल तिय मद के मद उमदाति। बलकि-बलकि बोलति बचन ललकि ललकि लपटाति ।।३५९।। अन्वय-मद के मद उमदाति नवल तिय हँसि-सँसि हेरति बलकि - बलकि बचन बोलति, ललकि ललकि लपटाति । PE हेरति = देखती है। मद के मद=शराब के नशे में । उमदाति = झूमकर देखती है । बलकि-बलकि = उबल-उबलकर, उत्तेजित हो-होकर । शराब के नशे में वह उन्मादिनी (मस्तानी) नवयुवती हँस-हँसकर देखती है । उमंग से भर-भरकर (अंटसंट) बातें करती है, और ललक ललकार (उत्कंठापूर्वक) लिपट जाती है। क खलित बचन अधखुलित हग ललित स्वेद-कन जोति । नय अरुन बदन छबि मदन की खरी छबीली होति ॥ ३०॥ अन्वय-खलित बचन अधखुलित हग स्वेद-कन जोति ललित बदन वरुन मदन की छबि खरी छबीली होति । खलित =स्खलित, स्फुट, अस्पष्ट । स्वेद-कन = पसीने की बूंदें। अरुन= लाल । खरी = अत्यन्त । मद छकी = शराब के नशे में चूर । bite 1