बिहारी-सतसई १४६ नोट-ऊंचे फूल तोड़ते समय स्वभावतः, पीन कुच की कोर कंचुकी से बाहर दीख पड़ेगी, और खिंचाव के कारण वस्त्र हट जाने से पखोरे औरत्रि वली के भी दर्शन हो जायँगे । सप्तम शतक का ६०८ वाँ दोहा देखिए । घाम घरीक निवारियै कलित ललित अलि-पुज । जमुना-तीर तमाल-तरु मिलित मालतो-कुंज ।। ३६३ ।। अन्वय-जमुना-तीर तमाल-तरु मिलित ललित अलि-पुंज कलित मालती- कुंज घरीक घाम निवारियै । घाम=धूप । घरीक = एक घड़ी । निवारियै = गँवाइये, बिताइये । तमाल =एक प्रकार का सुहावना श्यामल-वृक्ष । मालती-कुंज =मालती-लता-मण्डप । यमुना के तीर पर, तमाल तरु से मिलकर बनी हुई सुन्दर भौंरों से सुशो- मित मालती-कुंज में, एक घड़ी धूप गवा लीजिए। चलित ललित स्रम स्वेदकन कलित अरुन मुख ते न । बन-विहार थाकी तरुनि खरे थकाए नैन ॥३६४ ॥ अन्वय-चलित ललित स्रम स्वेदकन अरुन मुख तें कालत बन-बिहार थाकी तरुनि नैन खरे न थकाए । चलित = चंचल । ललित = सुन्दर । स्रम= परिश्रम । स्वेदकन-कलित पसीने की बूंदों से शोभित । अरुन = ललाई, अत्यन्त लाल । बन-बिहार : घन में किये गये आमोद-प्रमोद। तरुनि = तरुणी, युवती । चंचल और सुन्दर श्रम (स्वच्छन्द वन-विहार-जनित श्रान्ति) के पसीने की बूंदोंवाले (गुप्त रूप से ) वन में आमोद-प्रमोद करने से थकी हुई उस युवती के लाल मुखड़े से नायक की आँखे नहीं थकतीं ( उसकी वह शोमा देखते-देखते नायक के नेत्र नहीं थकते ।) नोट-कविवर 'शीतल' ने श्रम-बिन्दु पर क्या खूब कहा है- "मुख- सरदचंद पर सम-सीकर जगमगै नखत गन-जोती से, कै दल गुलाब पर शबनम के हैं कन के रूप-उदोती से, हीरे की कनियाँ मन्द लगे हैं सुधा किरन के गोती-से, आया है मदन आरती को घर कनक-थार में मोती-से।"