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बिहारी-सतसई
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नोट—ऊँचे फूल तोड़ते समय स्वभावतः, पीन कुच की कोर कंचुकी से बाहर दीख पड़ेगी, और खिंचाव के कारण वस्त्र हट जाने से पखौरे औरत्रि वली के भी दर्शन हो जायँगे। सप्तम शतक का ६०८ वाँ दोहा देखिए।

घाम घरीक निवारियै कलित ललित अलि-पुंज।
जमुना-तीर तमाल-तरु मिलित मालतो-कुंज॥३६३॥

अन्वय—जमुना-तीर तमाल-तरु मिलित ललित अलि-पुंज कलित मालती-कुंज घरीक घाम निवारियै।

घाम = धूप। घरीक = एक घड़ी। निवारियै = गँवाइये, बिताइये। तमाल = एक प्रकार का सुहावना श्यामल-वृक्ष। मालती-कुंज = मालती-लता-मण्डप।

यमुना के तीर पर, तमाल तरु से मिलकर बनी हुई सुन्दर भौंरों से सुशोभित मालती-कुंज में, एक घड़ी धूप गँवा लीजिए।

चलित ललित स्रम स्वेदकन कलित अरुन मुख तैं न।
बन-बिहार थाकी तरुनि खरे थकाए नैन॥३६४॥

अन्वय—चलित ललित स्रम स्वेदकन अरुन मुख तैं कलित बन-बिहार थाकी तरुनि नैन खरे न थकाए।

चलित = चंचल। ललित = सुन्दर। स्रम = परिश्रम। स्वेदकन-कलित = पसीने की बूँदों से शोभित। अरुन = ललाई, अत्यन्त लाल। बन-बिहार = घन में किये गये आमोद-प्रमोद। तरुनि = तरुणी, युवती।

चंचल और सुन्दर श्रम (स्वच्छन्द वन-बिहार-जनित श्रान्ति) के पसीने की बूँदोंवाले (गुप्त रूप से) वन में आमोद-प्रमोद करने से थकी हुई उस युवती के लाल मुखड़े से नायक की आँखे नहीं थकतीं (उसकी वह शोमा देखते-देखते नायक के नेत्र नहीं थकते।)

नोट—कविवर 'शीतल' ने श्रम-बिन्दु पर क्या खूब कहा है—"मुख-सरदचंद पर स्रम-सीकर जगमगै नखत गन-जोती से, कै दल गुलाब पर शबनम के हैं कन के रूप-उदोती से, हीरे की कनियाँ मन्द लगै हैं सुधा किरन के गोती-से, आया है मदन आरती को घर कनक-थार में मोती-से।"