पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/१६९

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सटीक : बेनीपुरी
 


बरजैं=मना करने पर। सकुचै=लजाना। सकाइ=डरना। दुमची=पतली डाल। मचक टूटते=लचकर या धक्का लगाकर टूटने से।

मना करने से (उसे) दूना हठ चढ़ जाता है—न लजाती है, न डरती है। पतली शाखा के समान (उसकी) कमर मचककर टूटने से लचक-लचककर बच जाती है।

नोट—झोंके से झूले पर झूलती हुई नायिका का वर्णन!

दोऊ चोर-मिहीचनी खेलु न खेलि अघात।
दुरत हियैं लपटाइ कै छुवत हियैं लपटात ॥३७०॥

अन्वय—दोऊ चोर-मिहीचनी खेलु खेलि न अघात। हियैं लपटाइ कैं दुरत, छुवत हियैं लपटात।

चोर-मिहीचनी=चोरिया-नुकिया नाम का खेल जिसमें एक छिपता है और दूसरा उसको ढूँढ़ता है, लुका-छिपी का खेल। अघात=तृप्त होते, भरपूर आनन्द लूटते हैं। दुरत = छिपना। हियैं=हृदय।

(नायक-नायिका) दोनों चोरिया-नुकिया खेल खेलकर नहीं अघाते! परस्पर हृदय से लिपटकर छिपते हैं और पुनः छूने के समय परस्पर हृदय से लिपट जाते हैं।

लखि लखि अँखियनु अधखुलिनु आँगु मोरि अँगिराइ।
आधिक उठि लेटति लटकि आलस भरी जम्हाइ ॥३७१॥

अन्वय—अधखुलिनु अँखियनु लखि लखि आँगु मोरि अँगिराइ आधिक उठि लटकि लेटति आलस भरी जम्हाइ।

(भर रात प्रीतम से बिहार करने के कारण प्रातःकाल) अधखुली आँखों से (इधर-उधर) देख-देखकर शरीर को मरोड़कर अँगड़ाई लेती है। (फिर बिछावन से) आधी उठ (फिर तुरंत) लटपटाकर लेट जाती है और आलस भरी हुई जम्हाई लेती है।