पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/१७१

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सटीक : बेनीपुरी
 

कुंज-भवन = वृन्दावन का केलि-मंदिर। चटकाहट = चटक + आहट = कलियों के चिटखने का शब्द। चहुँ ओर = चारों तरफ।

हे नंदकिशोर (श्रीकृष्ण जी)! कुंजभवन को छोड़कर अब घर चलिए, (क्योंकि) गुलाब की कली खिल रही है (और उसकी) चटक चारों ओर सुन पड़ रही है—(अर्थात् अब प्रात:काल हुआ, रास-विलास छोड़िये।)

नटि न सीस साबित भई लुटी सुखनु की मोट।
चुप करि ए चारी करति सारी परी सरोट॥३७५॥

अन्वय—नटि न सीस साबित भई सुखनु की मोट लुटी चुप करि ए सारी परी सरोट चारी करति।

नटि = नहीं नहीं करना। सीस साबित भई = तेरे ऊपर प्रमाणित हो गई। मोट = मोटरी, गठरी। चारी = चुगली। सारी = साड़ी, चुनरी। सरोट = सिकुड़न, शिकन।

नहीं-नहीं मत कर। अब तेरे मत्थे यह बात साबित हो गई कि तूने सुखों की मोटरी लूटी है। चुप हो जा, तेरी ये साड़ी में पड़ी हुई सिकुड़न ही चुगली कर रही है (कि यह किसी के द्वारा रौंदी गई है—क्योंकि रति-काल में स्वभावतः साड़ी मसल जाती है।)

मो सौं मिलवति चातुरी तूँ नहिं भानति भेउ।
कहे देत यह प्रगट हो प्रगट्यौ पूस पसेउ॥३७६॥

अन्वय—मो सौं तूँ चातुरी मिलवति भेउ नहिं मानति पूस पसेउ प्रगट्यौ यह प्रगट ही कहे देत।

मो सौं = मुझसे। मिलवति चातुरी = चतुराई भिड़ा रही है, चालाकी कर रही है। भानति = (संस्कृत 'भन्' = कहना) कहती है। भेउ = भेद, रहस्य। पसेउ = पसीना। प्रगट हीं = स्पष्ट, प्रत्यक्षा।

मुझसे तू चतुराई की बातें कर रही है, भेद नहीं बतलाती। किन्तु (कड़ाके का जाड़ा पड़नेवाले इस) पूस महीने में पसीना प्रगट होकर यह स्पष्ट कहे देता है (कि तू किसीके साथ समागम कर आई है।)