पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/१८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६३
सटीक : बेनीपुरा
 

हृदय में बस रही है, और (शिव के ललाट पर शोभित चंद्ररेखा के समान) उस प्रियतमा के नख की रेखा-रूपी (द्वितीया का) चन्द्रमा शीश पर है। यह हरि-हर का सुन्दर (संयुक्त) रूप लाकर (प्रातःकाल ही) अच्छा दिखलाया!

नोट—नायक भर-रात किसी दूसरी स्त्री के साथ बिहार कर प्रातःकाल नायिका के पास आया है। उसके सिर पर उस स्त्री के नख की खरोंट है। इसपर नायिका व्यंग्य और उपालम्भ सुनाती है।

ह्याँ न चलै बलि रावरी चतुराई की चाल।
सनख हियैं खिन-खिन नटत अनख बढ़ावत लाल॥४०५॥

अन्वय—रावरी चतुराई की चाल बलि ह्याँ न चलै, सनख हियैं खिन-खिन नटत लाल अनख बढ़ावत।

ह्याँ = यहाँ। बलि = बलिहारी। रावरी = आपकी। सनख = नखसहित। खिन-खिन = क्षण-क्षण। नटत = नहीं (इन्कार) करना। अनख = क्रोध। लाल = प्रीतम।

आपकी चतुराई की चाल, बलिहारी है, यहाँ न चलेगी। नख-रेखायुक्त चक्षःस्थल होने पर भी—छाती पर किसी दूसरी स्त्री के नख की खरोंट होने पर भी—क्षण-क्षण में इन्कार करके, हे लाल! क्यों अनख बढ़ा रहे हो—मुझे क्रोधित कर रहे हो?

न करु न डरु सबु जगु कहतु कत बिनु काज लजात।
सौहैं कीजै नैन जो साँचौ सौंहैं खात॥४०६॥

अन्वय—न करु न डरु सबु जगु कहतु बिनु काज कत लजात जौ साँचौ सौंहैं खात नेन सौंहैं कीजै।

कत = क्यों। बेकाज = व्यर्थ। सौंहैं =सम्मुख, सामने। कीजै = कीजिए। सौंहै = शपथ, कसम।

"न करो तो न डरो"— सारा संसार यही कहता है। (फिर) आप व्यर्थ क्यों लजाते हैं? (यदि) आप सच्ची कसम खाते हैं—यदि आप सचमुच आज रात को किसी दूसरी स्त्री के पास नहीं गये थे, तो आँम्बें सामने (बराबर) कीजिए—ढीठ होकर इधर ताकिए।