पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/१८६

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बिहारी-सतसई १६६ भये बटाऊ नेहु तजि बादि बकति बेकाज । अब अलि देत उराहनौ अति उपजति उर लाज ॥ ४१२ ।। अन्वय-नेहु तजि बटाऊ भये बेकाज बादि बकति । अलि अब उराहनों " देत उर अति लाज उपजति । बटाऊD बटोही, रमता जोगी, विरागी । बादि= व्यर्थ, बेकार । बेकाज- बेमतलब, निष्प्रयोजन । अलि =सखी । उराहनौ = उलहना । प्रेम छोड़कर ये बटोही हो गये, फिर व्यर्थ क्यों निष्प्रयोजन बकती हो ? अरी सम्बी ! अब इन्हें उलहना देने में भी हृदय में अत्यन्त लाज उपजती है- बड़ी लजा होती है। नोट-बटोही से भी कोई करता है प्रीत ! मसल है कि जोगी हुए किसके मीत ॥ - मीर हसन सुभर भस्यो तुव गुन-कननु पकयौ कपट कुचाल । क्यौधौं दारथौं ज्यौं हियौ दरकतु नाहिन लाल ॥ ४१३ ।। अन्वय-तुव गुन-कननु सुमर भस्यो कपट कुचाल पकयौ, लाल क्यौंधौं दास्यौं ज्यौं हियो नाहिन दरकतु । मुभर भरथौ =अच्छी तरह भर गया है । कननु =दानों से । पकयौ = पका दिया है । दारचौं =दाडिम=अनार । दरकतु = फटता है । तुम्हारे गुण-रूपी दानों से अच्छी तरह मर गया है, और तुम्हारे कपट और कुचाल ने उसे पका भी दिया है; तो मी हे लाल ! न मालूम क्यों अनार के समान मेरा हृदय फट नहीं जाता ? नोट-दाने भर जाने और अच्छी तरह पक जाने पर अनार आप-से-आप फट जाता है। हृदय पकने का भाव यह है कि कपट-कुचाल सहते-सहते नाकों दम हो गया है । असह्य कष्ट के अर्थ में 'छाती पक जाना' मुहावरा भी है । मैं तपाइ त्रय-ताप सौं राख्यौ हियौ हमामु । मति कबहूँ आवै यहाँ पुलकि पसीजै स्यामु ॥ ४१४ ॥ अन्वय-मैं हियौ-हमामु यस्ताप सौं तपाइ राख्यौ, मति कबहूँ पुलकि पसीजै स्यामु यहाँ श्रावै। । ।