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बिहारी-सतसई
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भये बटाऊ नेहु तजि बादि बकति बेकाज।
अब अलि देत उराहनौ अति उपजति उर लाज॥४१२॥

अन्वय—नेहु तजि बटाऊ भये बेकाज बादि बकति। अलि अब उराहनों देत उर अति लाज उपजति।

बटाऊ = बटोही, रमता जोगी, विरागी। बादि = व्यर्थ, बेकार। बेकाज = बेमतलब, निष्प्रयोजन। अलि = सखी। उराहनौ = उलहना।

प्रेम छोड़कर ये बटोही हो गये, फिर व्यर्थ क्यों निष्प्रयोजन बकती हो? अरी सखी! अब इन्हें उलहना देने में भी हृदय में अत्यन्त लाज उपजती है— बड़ी लजा होती है।

नोट—बटोही से भी कोई करता है प्रीत!
मसल है कि जोगी हुए किसके मीत॥ — मीर हसन

सुभर भस्यौ तुव गुन-कननु पकयौ कपट कुचाल।
क्यौंधौं दारयौं ज्यौं हियौ दरकतु नाहिन लाल॥४१३॥

अन्वय—तुव गुन-कननु सुभर भस्यौ कपट कुचाल पकयौ, लाल क्यौंधौं दास्यौं ज्यौं हियौ नाहिन दरकतु।

मुभर भरयौ = अच्छी तरह भर गया है। कननु = दानों से। पकयौ = पका दिया है। दारयौं = दाड़िम = अनार। दरकतु = फटता है।

तुम्हारे गुण-रूपी दानों से अच्छी तरह भर गया है, और तुम्हारे कपट और कुचाल ने उसे पका भी दिया है; तो भी हे लाल! न मालूम क्यों अनार के समान मेरा हृदय फट नहीं जाता?

नोट—दाने भर जाने और अच्छी तरह पक जाने पर अनार आप-से-आप फट जाता है। हृदय पकने का भाव यह है कि कपट-कुचाल सहते-सहते नाकों दम हो गया है। असह्य कष्ट के अर्थ में 'छाती पक जाना' मुहावरा भी है।

मैं तपाइ त्रय-ताप सौं राख्यौ हियौ हभाभु।
मति कबहूँ आवै यहाँ पुलकि पसीजै स्यामु॥४१४॥

अन्वय—मैं हियौ-हभाभु त्रय-ताप सौं तपाइ राख्यौ, मति कबहूँ पुलकि पसीजै स्याभु यहाँ आवै।