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बिहारी-सतसई
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अन्वय—चलत चलत लौं सब सुख संग लगाइ लै चखैं, ग्रीषम-वासर सिसिर-निसि प्यौ मो पास बसाइ।

ग्रीषम-बासर = गरमी के दिन। सिसिर-निसि = जाड़े की रात।

(परदेश) चलते-ही-चलते सब सुखों को संग लगाकर ले चले— जाते-ही-जाते सब सुखों को साथ ले गये। हाँ, ग्रीष्म के (तपते हुए बड़े-बड़े) दिन और शिशिर की (ठिठुरानेवाली लम्बी-लम्बी) रातें (इन्हीं दो को) प्रीतम ने मेरे पास बसा दीं—रख छोड़ी। (रात-दिन इतने बड़े-बड़े और भयंकर मालूम होते हैं कि काटे नहीं कटते—जाड़े की की रात और गरमी के दिन बहुत बड़े होते भी हैं)।

अजौं न पाए सहज रँग बिरह-दूबरैं गात।
अबहीं कहा चलाइयतु ललन चलनु की बात॥४८१॥

अन्वय—बिरह-दूबरैं गात अजौं सहज रँग न आए, ललन चलनु की बात अबहीं कहा चलाइयतु।

अजौं = अभी तक। सहज = स्वाभाविक। रँग = कान्ति, छटा।

बिरह से दुबली हुई (नायिका की) देह में अबतक स्वामाविक कान्ति भी नहीं पाई है, (फिर) हे जलन, (परदेश) चलने की बात अभी क्यों चला रहे हैं?

ललन चलनु सुनि पलनु में अँसुवा झलके आइ।
भई लखाइ न सखिनु हूँ झूठैं हीं जमुहाइ॥४८२॥

अन्वय—ललन चलनु सुनि पलनु में अँसुवा आई झलके, झूठैं हीं जमुहाइ सखिनु हूँ लखाइ न भई।

पलनु में = पलकों (आँखों) में। अँसुवा आइ झलके = चमकीले आँसू छलक आये। लखाइ न भई = मालूम नहीं हुई।

प्रीतम के परदेश चलने की बात सुनकर पलकों में आँसू आ झलके—आँखें डबडबा आईं। किन्तु नायिका के झूठी जम्हाई लेने के कारण (पास की) सखियों को मी (यथार्थ बात) नहीं मालूम हुई—(सखियों ने समझा कि ये आँसू अँगड़ाई लेने के कारण निकल आये हैं!)