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बिहारी-सतसई
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जु = जो। बिललाइ = अंटसंट बककर। सुआ = सुग्गा। ति = वह।

विरह से व्याकुल होकर उस वियोगिनी ने जो बिललाकर वचन कहे, सुग्गे ने उस वियोगिनी के ही वचन सुनाकर किसकी आँखों को आँसू-सहित न कर दिया—किसको रुला न दिया?

नोट—नायिका के पास एक सुग्गा (तोता) था। उसने नायिका के प्रलापों को सुनते-सुनते याद कर लिया था। वह प्रायः उन प्रलापों को उसी मर्मस्पर्शी स्वर में कहता था, जिन्हें सुनकर लोग करुणावश रो पड़ते थे।

सीरैं जतननु सिसिर रितु सहि बिरहिनि तन-तापु।
बसिबे कौं ग्रीषम दिननु पर्यौ परोसिनि पापु॥४९५॥

अन्वय—सिसिर-रितु सीरैं जतननु बिरहिनि तन-तापु सहि ग्रीषम दिननु बसिबे कौं परोसिनि पापु पर्यौ।

सारैं जतननु = शीतल उपचारों (खस की टट्टी, बरफ आदि) से। सिसिर-रितु = पूस-माघ। तन-तापु = शरीर की ज्वाला। बसिबे कौं = रहने को। पापु पर्यौ = पाप पड़ गया = अत्यन्त कठिन हो गया, महादुःखदायक हो गया।

(पड़ोसियों ने अत्यन्त शीतल) शिशिर-ऋतु में शीतल उपचारों से विर- हिणी नायिका के शरीर की ज्वाला को (किसी तरह) सहन किया। किन्तु (जलते हुए) ग्रीष्म के दिनों में (उस विरहिणी के पड़ोस में) रहना पड़ोसियों के लिए अत्यन्त कठिन हो गया।

पिय प्राननु की पाहरू करति जतन अति आपु।
जाकी दुसह दसा पर्यौ सौतिनि हूँ संतापु॥४९६॥

अन्वय—पिय प्राननु की पाहरू आपु अति जतन करति। जाकी दुसह दसा सौतिनि हूँ सतापु पर्यौ।

पाहरू = पहरुआ, रक्षक। दुसह = असह्य। संताप = पीड़ा।

(नायिका को) प्रीतम के प्राणों की रक्षिका समझकर उसकी रक्षा के लिए (सौतें) स्वयं भी अत्यन्त यत्न करती हैं (क्योंकि उसके बिना नायक नहीं जी सकता)। (आह! उसके दुःख का क्या पूछना!) जिसकी असहनीय अवस्था देखकर (स्वभावतः जलनेवाली) सौतों को भी दुःख होता है।