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सटीक : बेनीपुरी
 

ते पनिघट आउँ सखीरी वा यमुना के तीर। भरि भरि जमुना उमड़ि चलत है इन नैनन के नीर॥ इन नैनन के नीर सखीरी सेज भई घर नाव। चाहत हौं ताहीपै चढ़िकै हरिजू के ढिग जाव॥"

बन-बाटनु पिक-बटपरा तकि बिरहिन मतु मैन।
कुहौ-कुहौ कहि-कहि उठैं करि-करि राते नैन॥५२७॥

अन्वय—बन-बाटनु पिक-बटपरा बिरहिन तकि मैन मतु नैन राते करि-करि कुहौ-कुहौ कहि-कहि उठैं।

बाटनु = रास्ते में। पिक = कोयल। बटपरा = बटमार, लुटेरा, डाकू। मैन-मतु = कामदेव की सलाह से। कुहौ-कुहौ = (१)कुहू-कुहू (२)मारो-मारो। राते = रक्त = लाल।

वन के रास्तों में कोयल-रूपी डाकू विरहिणियों को देख कामदेव की सम्मति से आँखें लाल-लाल कर 'कुहौ-कुहौ' (मारो-मारो) कह उठता है।

दिसि-दिसि कुसुमित देखियत उपवन बिपिन समाज।
मनो बियोगिनु कौं कियौ सर-पंजर रतिराज॥५२८॥

अन्वय—दिसि-दिसि उपवन बिपिन समाज कुसुमित देखियत, मनो बियोगिनु कौं रतिराज सर-पंजर कियौ।

कुसुमित = फूले हुए। उपवन = फुलवारी। बिपिन = जंगल। समाज = समूह। सर-पंजर = बाणों का पिंजड़ा। रतिराज = कामदेव।

प्रत्येक दिशा में फुलवारिया और जंगलों के समूह फूले हुए दीख पड़ते हैं, मानो वियोगिनियों के लिए कामदेव ने बाणों का पिंजड़ा तैयार किया है—(ये चारों ओर के फूल विरहिणियों के हृदय को विदीर्ण करने में बाणों का काम देते हैं)।

नोट—कामदेव के बाण पुष्प के होते हैं। इसलिए चारों ओर खिले पुष्प-पुञ्ज को कामदेव का शर-पञ्जर कहा है। जैसे बाणों के पिंजड़े में केदी जिधर देखेगा उधर ही चोखी-तीखी नोकें दीख पड़ेंगी, वैसे ही चारों ओर फूले हुए फूल बिरहिणी को दृष्टि में चुभते हैं—दिल में खटकते हैं।