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सटीक : बेनीपुरी
 

नींदौ=नींद भी। नींदन जोगु=निन्दा करने के योग्य, निन्दनीय।

सोते समय स्वप्न में श्रीकृष्ण हिल-मिलकर विरह हर रहे थे—बिछोह के दुःख का नाश कर रहे थे। उसी समय निंदनीय नींद भी न मालूम कहाँ टल गई।

पिय बिछुरन कौ दुसह दुखु हरषु जात प्यौसार।
दुरजोधन-लौं देखियति तजति प्रान इहि बार ॥५३७॥

अन्वय—पिय-बिछुरन कौ दुसह दुखु हरषु प्यौसार जात, इहि बार दुरजोधन-लौं प्रान तजति देखियति।

प्यौसार=नैहर, मायका, पीहर। लौं=समान।

यद्यपि प्रीतम से बिछुड़ने का असह्य दुःख है, तथापि प्रसन्न होकर नैहर जाती है। (इस अत्यन्त दुःख और अत्यन्त सुख के सम्मिश्रण से) यह बाला दुर्योधन के समान प्राण त्यागती हुई दीख पड़ती है—(मालूम होता है कि इस आत्यन्तिक सुख-दुःख के झमेले में इसके प्राण ही निकल जायँगे।)

नोट—दुर्योधन को शाप था कि जब उसे समान भाव से सुख और दुःख होगा, तभी वह मरेगा। ऐसा ही हुआ भी। दुर्योधन के आदेशानुसार अश्वस्थामा पाण्डवों के भ्रम से उनके पुत्रों के सिर काट लाया। पहले शत्रु वध-जनित अतिशय आनन्द हुआ, फिर सिर पहचानने पर समूल वंशनाश जानकर घोर दुःख।

कागद पर लिखत न बनत कहत सँदेसु लजात।
कहिहै सबु तेरौ हियौ मेरे हिय की बात ॥५३८॥

अन्वय—कागद पर लिखत न बनत, सँदेसु कहत लजात, तेरौ हियौ मेरे हिय की सबु बात कहिहै।

कागद=कागज, हियौ=हृदय।

कागज पर लिखते नहीं बनता—लिखा नहीं जाता, और (जवानी) संदेश कहते लज्जा आती है। बस तुम्हारा हृदय ही मेरे हृदय की सारी बातें (तुमसे) कहेगा।

नोट—श्रीरामचन्द्रजी ने सीताजी के पास अत्यन्त हृदयग्राही संदेश भेजा था। तुलसीदास की मर्मस्पर्शी भाषा में उसे पढ़िए—