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सटीक : बेनीपुरी
 

चीज पकड़े नहीं बनती—कामदेव भी धनुष-बाण नहीं संभाल सकता। गहन=ग्रहण करना, धारण करना।

समूचे संसार को काम के अधीन कर दिया। जितने अजेय थे, (सब को) जीत लिया। (इस प्रकार) अगहन कामदेव को हाथ में धनुष और वाण नहीं धरने देता। (वह स्वयं सबको कामासक्त बना देता है।)

मिलि बिहरत बिछुरत मरत दम्पति अति रसलीन।
नूतन बिधि हेमंत-रितु जगतु जुराफा कीन॥५८२॥

अन्वय—अति रसलीन दम्पति मिलि बिहरत बिछुरत मरत, हेमंत-रितु नूतन बिधि जगतु जुराफा कीन।

बिहरत=विहार करते हैं। बिछुरत=बिछुड़ते ही, एक दूसरे से अलग होते ही। दम्पति=पति और पत्नी। जुगफा=अफ्रिका देश का एक जंतु जो अपनी मादा से बिछोह होते ही मर जाता है।

अत्यन्त रस (आनन्दोपभोग) में लीन दम्पति—प्रेम में पूरे पगे पति-पत्नी—हिल-मिलकर बिहार करते हैं और वियोग होते ही प्राण त्याग देते हैं। इस हेमन्त-ऋतु ने (अपनी) नवीन (शासन) व्यवस्था से सारे संसार को ही 'जुराफा' बना दिया। अथवा—हेमन्त ऋतु-रूपी नवीन ब्रह्मा ने सारे संसार को जुराफा के रूप में बदल दिया—सृष्टि ही बदल दी।

आवत जात न जानियतु तेजहिं तजि सियरानु।
घरहँ-जँवाई लौं घट्यौ खरौ पूम दिन-मानु॥५८३॥

अन्वय—आवत जात जानियतु न तेजहिं तजि सियरानु घरहँ-जँवाई लौं पूस दिन-मानु खरौ घट्यौ।

सियरानु=ठंढा पड़ गया है। घरहँ-जँवाई=घर जमाई, सदा ससुराल ही में रहनेवाला दामाद। लौं=समान। खरौ=अत्यन्त। मानु=(१) लम्बाई (२) आदर।

आते-जाते जान नहीं पड़ता—कब आया और कब गया, यह नहीं जान पड़ता; तेज को तजकर (तेजहीन होकर) टंढा पड़ गया है— 'घर-जमाई' के समान पूस के दिन का मान अत्यन्त घट गया है।