२४७ सटीक : बेनीपुरी रहा है। (निस्संदेह तुम उस कबूतर के मालिक छैल छबीले विलासी पर आसक्त हो, तभी तो उसके गिरहबाज कबूतर को देखते ही उसकी याद तुम ऐसी चेष्टाएँ दिखा रही हो!) कारे बरन डरावने कत आवत इहिं गेह । कै वा लखी सखी लखें लगै थरहरी देह ।। ६१४ ।। अन्वय-कारे बरन डरावने इहिं गेह कत आवत के वा लखी सखी नई देह थरहरी लग बरन =रंग । कत=क्यों । गेह = घर। कै= कई बार । लखी =देखा । थरहरी लगै=थरथरी या कँपकँपी होती है। (यह) काले रंग का डरावना मनुष्य (श्रीकृष्ण ) इस घर में क्यों आता है ? मैं इसे कई बार देख चुकी हूँ, और हे सखी ! इसे देखते ही मेरी देह में थरथरी लग जाती है-मैं डर से थरथर काँपने लगती हूँ। और सबै हरषी हँसति गावति भरी उछाह । तुहीं वह बिलखो फिरै क्यौं देवर के व्याह ॥ ६१५ ।। अन्वय-और सबै हरषी हँसति उछाह-मरी गावति देवर के ब्याह बहू तुहीं क्यों बिलखी फिरै। उछाह = उत्साह । बिलखी = व्याकुल । और सब स्त्रियाँ तो प्रसन्न हुई हँसती हैं और उत्साह में मरी गीत गा रही हैं । किन्तु देवर के ब्याह में, है बहू ! तू ही क्यों व्याकुल हुई फिरती हो ? नोट - देवर पर भौजाई अनुरक्त हैं । अब यह सोचकर, कि देवरानी के आते ही मुझपर देवर का ध्यान न रहेगा, यह व्याकुल है । रवि बंदौं कर जोरि ए सुनत स्याम के बैन । भए हमौहैं सबनु के अति अनखौहैं नैन ।। ६१६ ।। अन्वय -कर जोरि रवि बंदी ए स्याम के बैन सुनत सबनु के अति अनखी हैं नैन हौ हैं भए । बंदों = प्रणाम करो । हसौहैं = हास्यपूर्ण । अनखौ हैं = क्रुद्ध ।