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सटीक : बेनीपुरी
 

रन=युद्ध-भूमि। लखि=देखकर। लाखनु=लाखों। निराखरऊँ=गिरक्षर, वज्र-मूर्ख। मौज=बकसीस।

जयसिंह का मुख देखकर (शत्रुओं की) लाखों की फौज भी युद्ध-भूमि में नहीं ठहर सकती। (यों ही) उनसे याचना करके—दान माँगकर—निरक्षर (वज्र-मूर्ख) भी लाखों की बकसीस ले जाता है।

प्रतिबिम्बित जयसाहि-दुति दीपति दरपन-धाम।
सबु जगु जीतन कौं कर्यौ काय-व्यूह मनु काम॥६३१॥

अन्वय—दरपन-धाम जयसाहि-दुति प्रतिबिम्बित दीपति मनु काम सबु जगु जीतन कौं काय-व्यूह कर्यौ।

दुति=द्युति=चमक। दीपति=जगमगाती है। दरपन-धाम=आईने का बना हुआ घर, शीश-महल। काय-व्यूह=शरीर की सैन्य रचना।

शीश-महल में राजा जयसिंह की द्युति प्रतिबिम्बित होकर जगमगा रही है—जिधर देखो उधर उन्हींका रूप दीख पड़ता है—मानो कामदेव ने समूचे संसार को जीतने के लिए काय-व्यूह बनाया हो—अनेक रूप धारण किये हों।

नोट—जयपुर में महाराज जयसिंह का वह शीश-महल अबतक वर्त्तमान है। उसकी दीवारें, छत, फर्श सब कुछ शीशे का बना है। उसमें खड़े हुए एक मनुष्य के अनेक प्रतिबिम्ब चारों ओर देख पड़ते हैं।

दुसह दुराज प्रजानु कौं क्यौं न बढ़ै दुखु दंदु।
अधिक अँधेरौ जग करत मिलि मावस रवि-चंदु॥६३२॥

अन्वय—दुसह दुराज प्रजानु कौं दुखु दंदु क्यौं न बढ़ै, मावस रवि-चंदु मिलि जग अधिक अँधेरौ करत।

दुसह=असहनीय, (यहाँ) अत्यन्त क्षमताशील। दुगज=दो राजा। दन्दु=द्वन्द=दुःख। मावस=अमावस।

अत्यन्त क्षमताशीळ दो राजाओं के होने से प्रजा के दुःख क्यों न अत्यन्त बढ़ जायँ? अमावस के दिन सूर्य और चन्द्रमा (एक ही राशि पर) मिलकर संसार में अधिक अँधेरा कर देते हैं।