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सटीक : बेनीपुरी
 

हो नहीं सकते। 'कनक' कहे जाने पर भी—'सोने' का अर्थवाची (कनक) नाम होने पर भी धतूरे से (सोने के समान) गहने नहीं गढ़े जाते।

गुनी गुनी सब कैं कहैं निगुनी गुनी न होतु।
सुन्यौ कहूँ तरु अरक तैं अरक समान उदोतु॥६३६॥

अन्वय—सब कैं गुनी गुनी कहैं निगुनी गुनी न होतु अरक तरु तैं कहूँ अरक समान उदोतु सुन्यौ?

अरक=(१) अकवन=(२) सूर्य। उदोतु=ज्योति, प्रकाश।

सब किसी के 'गुणी-गुणी' कहने से—'गुणी-गुणी' कहकर पुकारने से—गुणहीन (कभी) गुणी नहीं हो सकता। (सब लोग 'अकवन' को 'अर्क' कहते हैं, और 'अर्क' 'सूर्य' को भी कहते हैं, सो एक नाम—(परस्पर पर्यायवाचक—होने पर भी) 'अकवन' के पेड़ से क्या कभी 'सूर्य' के समान ज्योति निकलते सुना है?

नाह गरजि नाहर-गरज बोलु सुनायौ टेरि।
फँसी फौज मैं बन्दि बिच हँसी सबनु तनु हेरि॥६३७॥

अन्वय—नाहर-गरज नाह गरजि टेरि बोलु सुनायौ, फौज मैं बन्दि बिच फँसी सबनु तनु हेरि हँसी।

नाह=पति। गरजि=गरजकर। नाहर-गरज=सिंह का गर्जन। टेरि बोलु सुनायौ=जोर से बोल सुनाया। बन्दि=घेरा। हेरि=देखकर।

सिंह के गर्जन के समान गरजकर पति (श्रीकृष्ण) ने जोर से (अपना) बोल सुना दिया। (उसे सुनते ही) फौज के घेरे में फँसी हुई (रुक्मिणी) सब लोगों के शरीर की ओर देखकर हँस पड़ी (कि अब तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते।)

संगति सुमति न पावहीं परे कुमति कैं धंध।
राखौ मेलि कपूर मैं हींग न होइ सुगंध॥६३८॥

अन्वय—कुमति कैं धंध परे संगति सुमति न पावहिं। कपूर मैं मेलि राखौ हींग सुगंध न होइ।