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सटीक:बेनीपुरी
 


ओठ उचै हाँसी भरी दृग भौंहनु की चाल।
मो मनु कहा न पी लियौ पियत तमाकू लाल॥६५२॥

अन्वय—ओठु उचै दृग मौंहनु की चाल हाँसी भरी, पियत तमाकू लाल कहा मो मनु न पी लियौ।

उचै=ऊँचे करके। दृग=आँख। मो=मेरा।

ओठों को ऊँचा कर और आँखों तथा भौंहों की चाल को हँसीयुक्त बनाकर तमाखू पीते हुए प्रीतम क्या मेरे मन को नहीं पी गये? (जरूर पी गये! तभी तो 'बे-मन' हुई घूमती हो!!)


बुरो बुराई जौ तजै तौ चितु खरौ सकातु।
ज्यौं निकलंकु मयंक लखि गनैं लोग उतपातु॥६५३॥

अन्वय—बुरो जौ बुराई तजै तौ चितु खरौ सकातु, ज्यौं निकलंकु मयंकु लखि लोग उतपातु गनैं।

सकातु=डरता है। मयंकु=चन्द्रमा। उतपातु=उपद्रव।

बुरे आदमी अगर अपनी बुराई तज देते हैं, तो मन बहुत डरता है=चित्त में भय उत्पन्न होता है। जिस प्रकार निष्कलंक चन्द्रमा को देखकर लोग उत्पात की आशंका करते हैं।

नोट—ज्योतिष में लिखा है कि यदि चन्द्रमा का काला धब्बा नष्ट हो जाय, तो संसार में हिम-वर्षा होगी।


भाँवरि अनभाँवरि भरे करौ कोरि बकवादु।
अपनी-अपनी भाँति कौ छुटै न सहजु सवादु॥६५४॥

अन्वय—भाँवरि अनभाँवरि भर कोरि बकवादु करौ, अपनी-अपनी भाँति कौ सहजु सवादु न छुटै।

भाँवरि भरे=चक्कर लगाओ। भाँति=ढंग। सहजु=स्वाभाविक। सवादु=रुचि, प्रवृत्ति।

(निगरानी करने की गरज से चाहे) उनके चारों ओर चक्कर लगओ या न लगाओ, या उनसे करोड़ों प्रकार के बकवाद करो; किन्तु अपने-अपने ढंग की स्वाभाविक प्रवृत्ति छूट नहीं सकती—(वे उस ओर जायँगे ही)।