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सटीक : बेनीपुरी
 

बढ़ाते। ऐ गुलाब, इस ठेठ देहात में फूलकर भी तुम बिना फूले हुए हो गये—तुम्हारा फूलना न फूलना बराबर हो गया।

कर लैं सूँघि सराहिहूँ रहैं सबै गहि मौनु।
गंधी अंध गुलाब कौ गँवई गाहकु कौनु ॥६६३॥

अन्वय—कर लैं सूँघि सराहिहूँ सबै मौनु गहि, रहैं, अंध गंधी गुलाब कौ गँवई कौनु गाहकु?

कर=हाथ। गंधी=इत्र बेचनेवाला। गँवई=देहात।

हाथ में लेकर सूँघकर और प्रशंसा करके भी सब चुप रह जाते हैं। अरे अंधा इत्रफरोश, इस गुलाब के इत्र का इस गँवई में कौन गाहक होगा?

को छूट्यौ इहिं जाल परि कत कुरंग अकुलात।
ज्यौं-ज्यौं सुरझि भज्यौ चहत त्यौं-त्यौं उरझत जात ॥६६४॥

अन्वय—इहिं जाल परि को छूट्यौ, कुरंग कत अकुलात, ज्यौं-ज्यौं सुरझि भज्यौ चहत त्यौं-त्यौं उरझत जात।

कत=क्यों। कुरंग=हिरन। भज्यौ=भागना।

इस जाल में पड़कर कौन छूटा? फिर, अरे हिरन! तू क्यों अकुलाता है? देख, ज्यों-ज्यों तू सुलझकर भागना चाहता है, त्यों-त्यों (इस उछल-कूद से) उलझता जाता है।

पटु पाँखै भखु काँकरै सपर परेई संग।
सुखी परेवा पहुमि मैं एकै तुँहीं बिहंग ॥६६५॥

अन्वय—पाँखै पटु काँकरै भखु सपर परेई संग, परेवा पहुमि मैं तुँहीं एकै सुखी बिहंग।

पटु=वस्त्र। भखु=भक्ष्य, भोजन। परेई—'परेवा' का स्त्रीलिंग 'परेई'। बिहंग=पक्षी। सपर=पंखयुक्त, परिवार के साथ।

पंख ही तुम्हारा वस्त्र है, (सर्वत्र-सुलभ) कंकड़ ही तुम्हारा भोजन है, और पंख वा परिवार (बाल-बच्चों) के साथ (अपनी प्राणेश्वरी) परेई का संग है—कभी वियोग नहीं होता। सो, हे परेवा, संसार में तुम्हीं एक सुखी पक्षी हो—तुम्हें यथार्थ में सुखी कह सकते हैं।