नहीं सुमिरा। और जिससे दूर भागने को कहा, (जिससे बचे रहने का वादा किया) ऐ गँवार, उसी (माया-मोह) को तूने भजा—उसीमें तू अनुरक्त हुआ।
पतवारी माला पकरि और न कछू उपाउ।
तरि संसार-पयोधि कौं हरि नावैं करि नाउ॥६८६॥
अन्वय—और कछू उपाउ न, माला पतवारी पकरि हरि नावैं नाउ करि संसार-पयोधि कौं तरि।
पतवारी=पतवार। नावें=नाम को ही। पयोधि=समुद्र।
दूसरा कोई उपाय नहीं। माला-रूपी पतवार को पकड़कर और ईश्वर के नाम की ही नौका बनाकर इस संसार-रूपी समुद्र को पार कर जाओ।
यह बिरिया नहि और की तूँ करिया वह सोधि।
पाहन-नाव चढ़ाइ जिहिं कीने पार पयोधि॥६८७॥
अन्वय—यह और की बिरिया नहि, तूँ वह करिया सोधि, जिहिं पाहननाव चढ़ाई पयोधि पार कीने।
बिरिया=वेला, समय। करिया=कर्णधार, मल्लाह। सोधि=खोजकर। पाहन=पत्थर। पयोधि=समुद्र।
यह दूसरे की बेर नहीं है—(इस अन्तिम अवस्था में कोई दूसरा मदद नहीं कर सकता), तू उसी मल्लाह को खोज, जिसने पत्थर की नाव पर चढ़ाकर समुद्र को पार कराया था।
नोट—श्रीरामचन्द्रजी पत्थर का पुल बनाकर अपनी मर्कट-सेना को लंका ले गये थे। उन्हीं का नाम भव-सागर-सेतु है।
दूरि भजत प्रभु पीठि दै गुन-बिस्तारन-काल।
प्रगटत निर्गुन निकट ह्वै चंग-रंग गोपाल॥६८८॥
अन्वय—गोपाल चंग-रंग गुन-बिस्तारन-काल प्रभु पीठि दै दूरि भजत, निर्गुन निकट ह्वै प्रगटत।
भजत=भागना। पीठि दै=विमुख होकर। गुन=(१) गुण (२) तागा। निर्गुन=(१) गुण-रहित (२) बिना तागे का। चंग=पतंग, गुड्डी। रंग=समान।